झारखंड में पैरा शिक्षकों को प्राइमरी एजुकेशन की रीढ़ माना जाता है. बावजूद इसके दशकों से सुदूरवर्ती और दुरूह ग्रामीण इलाकों में शिक्षण का कार्य कर रहे शिक्षकों को मामूली मानदेय से ही अपना घर चलाना पड़ रहा है. लिहाजा वे अब आंदोलन पर हैं. 15 से 19 मार्च तक पैरा शिक्षक अपनी नौकरी के नियमतीकरण और वेतनमान दिए जाने की मांग को लेकर विधानसभा के सामने धरना और प्रदर्शन करेंगे.
बता दें कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों की वैकेंसी को भरने के लिए 2002 और 2003 में पैरा शिक्षकों की बहाली की गई थी. यहां मैदान में जमा कोई शिक्षक 20 वर्षो से सेवा दे रहे हैं तो कोई 15 साल से ज़्यादा से लेकिन सभी की सैलरी 12 से 15 हज़ार के बीच है.
राज्य में 38000 से 40,000 प्राइमरी स्कूल हैं जहां ये शिक्षक अपनी सेवा देते हैं. इनमे से 13 हज़ार TET यानी teachers eligiblity test पास हैं और 48 हज़ार टीचर ट्रेनिंग कर चुके हैं यानी प्रशिक्षित हैं. इनके पढ़ाने का अनुभव भी 17 से 18 साल है. यानी यहां 40 से कोई नीचे नही और 50 की दहलीज़ को पार कर चुके कई शिक्षक हैं जो सिर्फ इसी उम्मीद में हैं कि पड़ोसी राज्य बिहार, UP और छत्तीसगढ़ की तरह ही कभी तो सरकार उनके लिए भी सोचेगी और उनका नियमतीकरण हो जाएगा.
इस प्रर्दशन में दुमका से रांची पहुंचे मोहन मंडल का कहना है कि कभी वो मां-बाप पर आश्रित थे. यहां उन्हें कम पैसे भी मिलते थे तो मां बाप ज़रूरतें पूरी कर देते थे. अब तो मां-बाप उन पर आश्रित हैं और बच्चों का पालन पोषण भी उनकी जिम्मेदारी है. 20 साल की उम्र में वो नौकरी में आए थे और अब 40 के हो गए हैं. वो कहते हैं कि बताइए इस उम्र में अब क्या करें कहां जाएं.
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