रांची: झारखंड में पारा शिक्षकों के स्थायीकरण का मुद्दा एकबार फिर गर्माने लगा है। विभिन्न ज़िलों के हज़ारों पारा शिक्षकों ने रांची में डेरा डाल दिया है। विधानसभा सत्र के दौरान सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए पारा शिक्षकों ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है। एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा ने हेमंत सोरेन की सरकार को 19 मार्च तक का अल्टीमेटम दिया है। सरकार पारा शिक्षकों के स्थायीकरण, वेतनमान और नियमावली को लेकर अंतिम निर्णय ले। ऐसा नहीं करने पर राज्यभर के पारा शिक्षक उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। इस दौरान मंत्री और विधायकों का घेराव भी किया जाएगा।
अपने वादे से मुकरी सरकार
एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा के नेता संजय दूबे का आरोप है कि, हेमंत सोरेन सरकार ने सरकार गठन के तीन माह के अंदर समस्याओं के निदान का भरोसा दिलाया था। आज सरकार के एक साल से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी पारा शिक्षकों की समस्याएं जस की तस पड़ी हुई हैं। उन्होने आरोप लगाया कि, पारा शिक्षकों के स्थायीकरण और वेतनमान का वादा कर सत्ता पर काबिज होने वाली सरकार अपने वादे से मुकर गई है। लिहाज़ा, राज्यभर के पारा शिक्षकों के सामने विरोध-प्रदर्शन के अलावा कोई चारा नहीं है। रांची में पारा शिक्षकों के आंदोलन में शामिल संजय दूबे ने कहा कि, सरकार को उग्र आंदोलन का सामना करना पड़ेगा।
पारा शिक्षकों की मांग
राज्यभर के 65 हज़ार पारा शिक्षक सेवा स्थायीकरण, वेतनमान और नियामवली की मांग को लेकर आंदोलनरत हैँ। इससे पहले भी राज्यभर के पारा शिक्षकों का जमावड़ा रांची में लग चुका है। पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार के समय पारा शिक्षकों की मांगों के लिए उच्चस्तरीय कमेटी का गठन भी किया गया। तत्कालीन शिक्षा मंत्री नीरा यादव ने खुद पारा शिक्षकों की मांगों को लेकर गंभीरता दिखाई। हालांकि, समस्या का स्थायी समाधान नहीं किया जा सका। विपक्ष में रहते हुए झामुमो, कांग्रेस और राजद ने पारा शिक्षकों की मांगों का समर्थन किया था। हालांकि, सत्ता पर काबिज होने के बाद हेमंत सरकार पारा शिक्षकों के स्थायीकरण को लेकर अबतक अंतिम निर्णय नहीं ले सकी है।
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