राज्य की नियोजन नीति को रद्द करने के झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सरकार की ओर से एसएलपी( विशेष अनुमति याचिका) दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया है। सरकार ने इस नीति के तहत अनुसूचित जिलों में रद्द की गयी शिक्षकों की नियुक्ति के आदेश को भी रद्द करने का आग्रह किया है।
झारखंड हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 21 सितंबर को राज्य के नियोजन नीति को असंवैधानिक बताया था और इस नीति के तहत अनुसूचित जिलों में हुई नियुक्तिों को रद्द कर दिया था। सरकार को इन जिलों में नियुक्ति प्रक्रिया फिर से शुरू करने का निर्देश दिया था।
सरकार की नियोजन नीति में राज्य के अनुसूचित जिलों में तीसरे और चतुर्थ वर्ग की नौकरियां सिर्फ उन्हीं जिलों के स्थानीय निवासियों के लिए ही निर्धारित की थी। गैर अनुसूचित जिले के लोग यहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे। जबकि गैर अनुसूचित जिलों की अनुसूचित जिले के लोग आवेदन कर सकते थे। हाईस्कूल शिक्षकों की नियुक्ति इसी नीति के तहत की गयी थी। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से कहा गया है कि पांचवी अनुसूचि में राज्यपाल को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार है। राज्य की स्थिति और परिस्थिति को देखते हुए कई राज्यों में ऐसी नीति बनाई गयी है। कई राज्यों में भी इस तरह की नीति लागू की गयी है। सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला भी राज्य सरकार ने दिया है जिसमें कहा गया है कि नियुक्ति में यदि अभ्यर्थियों की ओर से कोई गलती नहीं की गयी है, तो नियुक्त होने के बाद उनकी सेवा समाप्त नहीं की जा सकती।
पांचवीं अनुसूची का हवाला : सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा है कि पांचवी अनुसूची में राज्यपाल को इस तरह की नीति बनाने का अधिकार है। राज्य की स्थिति को देखते हुए कई राज्यों में ऐसी नीति बनाई गयी है।
अनुसूचित जिले : रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज।
गैर अनुसूचित जिले : पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा और देवघर।
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