रांची, जेएनएन। झारखंड राज्य के 18वें स्थापना दिवस पर
खलल पड़ ही गया। झारखंड गठन के बाद से यह पहला अवसर है जब ऐसा खलल पड़ा
है। राज्य सरकार और पारा शिक्षकों का टकराव इस दिन विशेष को ही
चरम पर पहुंच गया। पारा शिक्षकों ने सरकार की चेतावनी के बावजूद अपने विरोध का स्वर बुलंद किया वह भी मुख्य समारोह स्थल पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री की उपस्थिति में। शुक्रवार तक 216 पारा शिक्षकों को बर्खास्त किया जा चुका है। 280 पारा शिक्षकों को जेल भेजा गया है। जबकि हजारों शिक्षकों की नौकरी जा सकती है।
वहीं, प्रशासन ने भी उपद्रव को शांत करने के लिए सख्ती से परहेज नहीं किया। लाठीचार्ज हुआ, जिसमें कईयों को चोटे भी लगीं। जो हुआ उसे कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता। कम से कम राज्य के सबसे बड़े पर्व स्थापना दिवस पर तो ऐसा कतई नहीं होना चाहिए था। राज्य सरकार और पारा शिक्षकों का टकराव कोई नया नहीं है। अरसे से यह टकराव चल रहा है, जो आज चरम पर पहुंच गया।
इस टकराव को टाला भी जा सकता था। राज्य सरकार और पारा शिक्षकों दोनों यदि थोड़ा सा लचीला रुख अपनाते तो कम से कम स्थापना दिवस समारोह में खलल तो नहीं पड़ता। राज्य सरकार ने पारा शिक्षकों की मांगों पर विचार करने के लिए कार्मिक विभाग के सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। इस कमेटी ने प्रावधानों के अध्ययन और पारा शिक्षकों की सेवा की प्रकृति को देखते हुए उन्हें स्थायी करने पर स्वीकृति नहीं दी।
सहमति न बनने से आक्रोशित पारा शिक्षकों ने चेतावनी पहले ही दे दी थी। राज्य सरकार ने चेतावनी का जवाब चेतावनी से दिया जिस कारण टकराव के हालात बन गए। राज्य में लगभग 67 हजार पारा शिक्षक हैं। प्राइमरी शिक्षा इन्हीं के बूते चल रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि पारा शिक्षकों के हितों के लिए राज्य सरकार ने कदम नहीं उठाए हैं। कई अहम निर्णय लिए गए हैं। लेकिन पारा शिक्षक इतने भर से संतुष्ट नहीं हैं।
वे स्थायीकरण की मांग पर अडिग है, जो फिलहाल संभव नहीं दिखाई देता। जाहिर है यह टकराव आगे भी चलेगा। कहा यह भी जा रहा है कि पारा शिक्षकों का आंदोलन अब राजनीतिक रूप लेने लगा है। विपक्ष के साथ-साथ सरकार का सहयोगी आजसू भी उनकी मांगों के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। बेहतर यही होगा कि इसे राजनीतिक रंग न दिया जाए। सरकार और पारा शिक्षकों दोनों के स्तर पर एक बार फिर वार्ता कर समस्या का हल खोजा जाए।
कई जिलों में हुआ प्रदर्शन : चुनावी मौसम को देखते हुए झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर पारा शिक्षकों पर लाठीचार्ज की घटना को ले राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। इधर लाठीचार्ज के विरोध में पारा शिक्षक संघ बेमियादी हड़ताल पर चला गया है। विभिन्न दलों ने इसको लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का निर्णय किया है। शिक्षक स्थायी करने की मांग को लेकर जिलों में प्रदर्शन कर रहे हैं। खूंटी में झाविमो ने सरकार का पुतला दहन किया है। कोडरमा में वामपंथी समेत अनेक दलों ने विरोध जताते हुए सीएम रघुवर दास का पुतला फूंका है। लातेहार और पलामू में राजद ने मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया है।
और शिक्षकों पर होगी कार्रवाई : 15 नवंबर राज्य स्थापना दिवस पर सरकार ने सरकारी स्कूल खोल दिए थे। स्कूल छोड़ स्थापना दिवस में बाधा डालने वाले दो सौ से अधिक पारा शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया है। रांची में प्रदर्शन करने वाले ऐसे 600 लोगों की पहचान करते हुए उनकी बर्खास्तगी को लेकर जिलों को सिफारिश भेजने की कार्रवाई चल रही है। अब तक ऐसे हजारों शिक्षकों की पहचान कर ली गई ।
चरम पर पहुंच गया। पारा शिक्षकों ने सरकार की चेतावनी के बावजूद अपने विरोध का स्वर बुलंद किया वह भी मुख्य समारोह स्थल पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री की उपस्थिति में। शुक्रवार तक 216 पारा शिक्षकों को बर्खास्त किया जा चुका है। 280 पारा शिक्षकों को जेल भेजा गया है। जबकि हजारों शिक्षकों की नौकरी जा सकती है।
वहीं, प्रशासन ने भी उपद्रव को शांत करने के लिए सख्ती से परहेज नहीं किया। लाठीचार्ज हुआ, जिसमें कईयों को चोटे भी लगीं। जो हुआ उसे कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता। कम से कम राज्य के सबसे बड़े पर्व स्थापना दिवस पर तो ऐसा कतई नहीं होना चाहिए था। राज्य सरकार और पारा शिक्षकों का टकराव कोई नया नहीं है। अरसे से यह टकराव चल रहा है, जो आज चरम पर पहुंच गया।
इस टकराव को टाला भी जा सकता था। राज्य सरकार और पारा शिक्षकों दोनों यदि थोड़ा सा लचीला रुख अपनाते तो कम से कम स्थापना दिवस समारोह में खलल तो नहीं पड़ता। राज्य सरकार ने पारा शिक्षकों की मांगों पर विचार करने के लिए कार्मिक विभाग के सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। इस कमेटी ने प्रावधानों के अध्ययन और पारा शिक्षकों की सेवा की प्रकृति को देखते हुए उन्हें स्थायी करने पर स्वीकृति नहीं दी।
सहमति न बनने से आक्रोशित पारा शिक्षकों ने चेतावनी पहले ही दे दी थी। राज्य सरकार ने चेतावनी का जवाब चेतावनी से दिया जिस कारण टकराव के हालात बन गए। राज्य में लगभग 67 हजार पारा शिक्षक हैं। प्राइमरी शिक्षा इन्हीं के बूते चल रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि पारा शिक्षकों के हितों के लिए राज्य सरकार ने कदम नहीं उठाए हैं। कई अहम निर्णय लिए गए हैं। लेकिन पारा शिक्षक इतने भर से संतुष्ट नहीं हैं।
वे स्थायीकरण की मांग पर अडिग है, जो फिलहाल संभव नहीं दिखाई देता। जाहिर है यह टकराव आगे भी चलेगा। कहा यह भी जा रहा है कि पारा शिक्षकों का आंदोलन अब राजनीतिक रूप लेने लगा है। विपक्ष के साथ-साथ सरकार का सहयोगी आजसू भी उनकी मांगों के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। बेहतर यही होगा कि इसे राजनीतिक रंग न दिया जाए। सरकार और पारा शिक्षकों दोनों के स्तर पर एक बार फिर वार्ता कर समस्या का हल खोजा जाए।
कई जिलों में हुआ प्रदर्शन : चुनावी मौसम को देखते हुए झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर पारा शिक्षकों पर लाठीचार्ज की घटना को ले राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। इधर लाठीचार्ज के विरोध में पारा शिक्षक संघ बेमियादी हड़ताल पर चला गया है। विभिन्न दलों ने इसको लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का निर्णय किया है। शिक्षक स्थायी करने की मांग को लेकर जिलों में प्रदर्शन कर रहे हैं। खूंटी में झाविमो ने सरकार का पुतला दहन किया है। कोडरमा में वामपंथी समेत अनेक दलों ने विरोध जताते हुए सीएम रघुवर दास का पुतला फूंका है। लातेहार और पलामू में राजद ने मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया है।
और शिक्षकों पर होगी कार्रवाई : 15 नवंबर राज्य स्थापना दिवस पर सरकार ने सरकारी स्कूल खोल दिए थे। स्कूल छोड़ स्थापना दिवस में बाधा डालने वाले दो सौ से अधिक पारा शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया है। रांची में प्रदर्शन करने वाले ऐसे 600 लोगों की पहचान करते हुए उनकी बर्खास्तगी को लेकर जिलों को सिफारिश भेजने की कार्रवाई चल रही है। अब तक ऐसे हजारों शिक्षकों की पहचान कर ली गई ।
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