कोडरमा : बिना प्रखंड शिक्षा समिति के अनुमोदन के लिए वर्ष 2003 से जिले
में कार्यरत 1427 पारा शिक्षकों को चयनमुक्त करने का आदेश कोडरमा जिला
प्रशासन ने जारी किया है। जिला प्रशासन के अनुसार नियमानुसार ऐसे पारा
शिक्षकों का प्रखंड शिक्षा समिति से अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक था।
गुरुवार को उपायुक्त की अध्यक्षता में हुई जिला शिक्षा समिति की बैठक में इस मामले पर गहनता से विचार के पश्चात ऐसे शिक्षकों को चयनमुक्त करने का निर्णय लिया गया। दिलचस्प बात है कि इससे पहले ऐसे पारा शिक्षकों से ही स्पष्टीकरण पूछा जाएगा। साथ ही साथ ही इतने वर्षों बाद भी अनुमोदन प्राप्त नहीं करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच का निर्देश दिया गया है। पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारियों को चिह्नित कर कार्रवाई की भी बात कही गई कि किन कारणों से नियमों के विपरीत पारा शिक्षकों के बिना अनुमोदन के ही रखा गया। साथ ही जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। इसमें कार्यपालक दंडाधिकारी संतोष ¨सह, जिला शिक्षा पदाधिकारी शिवनारायण साह, एडीपीओ देवेश कुमार को रखा गया है। जांच दल को अविलंब पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट समर्पित करने को कहा गया है।
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उल्लेखनीय होगा कि पारा शिक्षक का चयन ग्राम शिक्षा समिति द्वारा किया जाता था। तत्पश्चात प्रखंड शिक्षा समिति से इसका अनुमोदन किया जाना था। प्रखंड शिक्षा समिति में चयन की संचिका भेजने की जवाबदेही संबंधित ग्राम शिक्षा समिति के सचिव की थी। अधिकतर मामलों में संचिका प्रखंड शिक्षा समिति को भेजी भी गई थी, लेकिन 90 फीसद से अधिक मामलों में प्रखंड शिक्षा समिति की बैठक नियमित नहीं होने के कारण ऐसे मामलों में अनुमोदन नहीं दिया गया। इसके बाद भी जिला स्तर से नियुक्त किए गए पारा शिक्षकों का वेतन संबंधित ग्राम शिक्षा समिति के खाते में भेजा जाता रहा। 2010 से प्रखंड संसाधन केंद्र से पारा शिक्षकों के खाते में सीधे उनका मानदेय भेजा जाता रहा। सारी प्रक्रिया जिले के उच्चाधिकारियों व शिक्षा विभाग की जानकारी में होती रही। ऐसे में नियुक्त होने वाले पारा शिक्षक इसमें कैसे जवाबदेह हैं, यह बड़ा सवाल है। यदि बिना प्रखंडस्तरीय समिति के अनुमोदन के इनका चयन नियमविरुद्ध था तो इतने वर्षों तक कैसे इन्हें मानदेय भुगतान किया जाता रहा, यह भी बड़ा सवाल है। वहीं जब विभाग में शिक्षकों की घोर कमी है, तब इतनी बड़ी संख्या में पारा शिक्षकों को चयनमुक्त करने का जहमत विभाग उठा सकेगा, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। सनद हो कि पूर्व में भी यह मामला उठा था, लेकिन मामला में विभाग को ही उलझता देख, पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
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पारा शिक्षिका को फिर चयनमुक्त करने का निर्णय
वहीं बैठक में चंदवारा प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित मध्य विद्यालय दिग्थूगैंडा के पारा शिक्षिका चंदा देवी को फिर से चयनमुक्त करने का निर्णय लिया गया। संबंधित पारा शिक्षक को दोबारा नियमविरूद्ध कार्य पर रखने के कारण जिला शिक्षा पदाधिकारी सह डीएसई से प्राथमिकी शिक्षा निदेशक ने स्पष्टीकरण मांगा था। इससे पूर्व जिला स्थापना समिति के निर्णय के अनुसार उक्त पारा शिक्षिका की नियुक्ति अवैध पाते हुए उन्हें चयनमुक्त कर दिया गया था। बाद में पुन: नाटकीय ढंग से उक्त शिक्षिका को विद्यालय में फिर से बहाल करने का आदेश दिया गया था।
गुरुवार को उपायुक्त की अध्यक्षता में हुई जिला शिक्षा समिति की बैठक में इस मामले पर गहनता से विचार के पश्चात ऐसे शिक्षकों को चयनमुक्त करने का निर्णय लिया गया। दिलचस्प बात है कि इससे पहले ऐसे पारा शिक्षकों से ही स्पष्टीकरण पूछा जाएगा। साथ ही साथ ही इतने वर्षों बाद भी अनुमोदन प्राप्त नहीं करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच का निर्देश दिया गया है। पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारियों को चिह्नित कर कार्रवाई की भी बात कही गई कि किन कारणों से नियमों के विपरीत पारा शिक्षकों के बिना अनुमोदन के ही रखा गया। साथ ही जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है। इसमें कार्यपालक दंडाधिकारी संतोष ¨सह, जिला शिक्षा पदाधिकारी शिवनारायण साह, एडीपीओ देवेश कुमार को रखा गया है। जांच दल को अविलंब पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट समर्पित करने को कहा गया है।
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उल्लेखनीय होगा कि पारा शिक्षक का चयन ग्राम शिक्षा समिति द्वारा किया जाता था। तत्पश्चात प्रखंड शिक्षा समिति से इसका अनुमोदन किया जाना था। प्रखंड शिक्षा समिति में चयन की संचिका भेजने की जवाबदेही संबंधित ग्राम शिक्षा समिति के सचिव की थी। अधिकतर मामलों में संचिका प्रखंड शिक्षा समिति को भेजी भी गई थी, लेकिन 90 फीसद से अधिक मामलों में प्रखंड शिक्षा समिति की बैठक नियमित नहीं होने के कारण ऐसे मामलों में अनुमोदन नहीं दिया गया। इसके बाद भी जिला स्तर से नियुक्त किए गए पारा शिक्षकों का वेतन संबंधित ग्राम शिक्षा समिति के खाते में भेजा जाता रहा। 2010 से प्रखंड संसाधन केंद्र से पारा शिक्षकों के खाते में सीधे उनका मानदेय भेजा जाता रहा। सारी प्रक्रिया जिले के उच्चाधिकारियों व शिक्षा विभाग की जानकारी में होती रही। ऐसे में नियुक्त होने वाले पारा शिक्षक इसमें कैसे जवाबदेह हैं, यह बड़ा सवाल है। यदि बिना प्रखंडस्तरीय समिति के अनुमोदन के इनका चयन नियमविरुद्ध था तो इतने वर्षों तक कैसे इन्हें मानदेय भुगतान किया जाता रहा, यह भी बड़ा सवाल है। वहीं जब विभाग में शिक्षकों की घोर कमी है, तब इतनी बड़ी संख्या में पारा शिक्षकों को चयनमुक्त करने का जहमत विभाग उठा सकेगा, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। सनद हो कि पूर्व में भी यह मामला उठा था, लेकिन मामला में विभाग को ही उलझता देख, पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
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पारा शिक्षिका को फिर चयनमुक्त करने का निर्णय
वहीं बैठक में चंदवारा प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित मध्य विद्यालय दिग्थूगैंडा के पारा शिक्षिका चंदा देवी को फिर से चयनमुक्त करने का निर्णय लिया गया। संबंधित पारा शिक्षक को दोबारा नियमविरूद्ध कार्य पर रखने के कारण जिला शिक्षा पदाधिकारी सह डीएसई से प्राथमिकी शिक्षा निदेशक ने स्पष्टीकरण मांगा था। इससे पूर्व जिला स्थापना समिति के निर्णय के अनुसार उक्त पारा शिक्षिका की नियुक्ति अवैध पाते हुए उन्हें चयनमुक्त कर दिया गया था। बाद में पुन: नाटकीय ढंग से उक्त शिक्षिका को विद्यालय में फिर से बहाल करने का आदेश दिया गया था।
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