Ranchi: झारखंड में बहुमत वाली बीजेपी सरकार के 12
सांसद हैं. राजमहल और दुमका लोकसभा को छोड़ दी जाए तो, पूरा झारखंड भगवा
नजर आता है. अमित शाह की रणनीति है कि इस लोसकभा चुनाव में बीजेपी क्लीन
स्वीप करे. लेकिन बीते चार साल में सूबे में सरकार की 10 नीतियों की वजह से
लोकसभा चुनाव पर असर पड़ता दिखायी दे रहा है. पिछली बार की तरह इस बार भी
लोकसभा चुनाव में मोदी ही चेहरा हैं. लेकिन जानकारों का मानना है कि इस बार
तस्वीर बदल सकती है. आखिर क्या हैं वो दस वजह जो लोकसभा चुनाव में बीजेपी
को बट्टा लगाने का काम कर सकती है. जानते हैं…
सरकार से है सांसदों की नाराजगी
सांसदों
की नाराजगी मौजूदा सरकार से अभी की बात नहीं है. अंदर ही अंदर कई मामलों
को लेकर सांसद रघुवर सरकार का विरोध करते आए हैं. अब जब चुनाव नजदीक आ गया
है, तो सांसद खुल कर सामने आ रहे हैं. हाल ही में मीडिया में छपी एक
रिपोर्ट के मुताबिक, सांसद रामटहल चौधरी सरकार की स्थानीय नीति को लेकर
सरकार का विरोध कर रहे हैं. सांसद कड़िया मुंडा का कहना है कि सरकार का
जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच संवादहीनता की स्थिति है. सांसद पशुपतिनाथ
सिंह का कहना है कि सरकार ने कई काम किए हैं, लेकिन अभी भी कई तरह की
कमियां हैं. उन्हें दूर करने की जरूरत है. सांसद रविंद्र पांडे और रविंद्र
राय ने सरकार की स्कूल मर्जर की योजना का विरोध किया है. रविंद्र पांडे का
कहना है कि हमें यह पता लगाना चाहिए कि जिन स्कूलों का मर्जर हुआ है, उसके
बच्चे कहां गए. वहीं रविंद्र राय का कहना है कि उन्होंने स्कूल मर्ज होते
हुए अपनी लाइफ में पहली बार ही देखा है.
विधायकों की नहीं चलती, मंत्री भी बेबस
2014
चुनाव के बाद रघुवर सरकार में शायद ही कोई मंत्री या विधायक हो, जो दावे
का साथ अपने वोटरों से कुछ वादा कर सके. सभी के मन में हर वक्त संकोच रहता
है कि किया हुआ वादा सरकार की तरफ से वो पूरा कर पाएंगे या नहीं. यहां तक
कि मंत्रीपरिषद की बैठकों में विभाग के मंत्री को कभी-कभी यह पता नहीं होता
है कि उनके विभाग में क्या फेरबदल होने वाला है. कहा जाए तो सारे मंत्री
इस सरकार में विभाग में बस विभाग प्रमुख होने का काम कर रहे हैं. जबकि
फैसला सीएम के स्तर से होता है. ऐसे में चुनाव में मंत्री और विधायकों का
गुस्सा सरकार के लिए लाजिमी है.
पार्टी कार्यकर्ता और बड़े नेताओं का हाशिए पर जाना
बीजेपी
की बीट कवर करने वाले पत्रकारों से ज्यादा इस बात को कोई नहीं समझ सकता है
कि मौजूदा सरकार को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच कितना आक्रोश है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपनी छवि इस तरह डेवलप की कि दूसरा कोई नेता बड़ा
होकर भी बड़ा बन नहीं सका. पार्टी के जितने भी बड़े नेता हैं, अगर वो
रघुवर दास के फोल्डर के नहीं हैं तो वो अपने-आप को हाशिए पर पा रहे हैं.
मौन रखना उनकी नैतिक जिम्मेदारी हो गयी है.
पारा शिक्षक एक बड़ा मामला
स्थापना
दिवस के दिन जिस तरीके एक तरफ सीएम का भाषण चल रहा था और दूसरी तरफ पारा
शिक्षकों को पीटा जा रहा था, उससे पारा शिक्षकों में काफी आक्रोश है.
उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. सार्वजनिक रूप से सीएम ने एक आयोजन
में कहा कि इतनी धाराएं लादेंगे कि पारा शिक्षक जेल से छूट कर वापस नहीं
आएंगे. इन बातों से पारा शिक्षकों के साथ अल्पवेतन भोगियों में सरकार को
लेकर काफी आक्रोश है. हालांकि पारा शिक्षक मामले में सराकर अब बैकफुट पर
है. शिक्षकों को बेल मिल रहा है और सरकार की तरफ से उनके मानदेय में भी
बढ़ोतरी की गयी है.
पुलिस वालों से वादा कर भूल जाती है सरकार
15
मई 2016 में बोकारो जिले में नवाडीह थाना प्रभारी रामचंद्र राम की मौत के
बाद जिस तरीके से सीएम ने पुलिसवालों के लिए घोषणा की थी. उससे पुलिस महकमे
में काफी खुशी थी. सीएम ने कहा था कि विधि व्यवस्था संभालते हुए भी अगर
पुलिस की जान जाती है तो उसे नक्सली हिंसा में मारे गए पुलिस कर्मियों की
तरह मुआवजा और सुविधाएं मिलेंगी. लेकिन वादा करने का बाद रघुवर सरकार भूल
गयी. इससे पुलिस महकमे में काफी आक्रोश है. इस घोषणा के अलावा और भी कई
वादे थे जो सरकार ने पुलिस वालों के लिए की थी और वो पूरे नहीं हुए.
बिजली की स्थिति से कारोबारी और जनता परेशान
हर
खनिज संपदा से संपन्न झारखंड में बिजली की घोर समस्या है. यहां की बिजली
से दूसरे राज्यों में रौशनी है और झारखंड अंधेरे में डूबा है. राजधानी
रांची की हालत यह है कि यहां किसी तरह 10 घंटे ही बिजली रह रही है. बिजली
की समस्या से कारोबारी से लेकर आमजन जूझ रहा है. समस्या के पीछे सीधे तौर
से सरकार की नीति जिम्मेवार है.
रोजगार के नाम पर सरकार ने युवाओं को ठगा
सरकार
भले ही एक लाख युवाओं को रोजगार देने की बात कर अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन
जमीनी स्तर पर यह कोरी अफवाह ही साबित होगी. स्किल डेवलप कर दूसरे राज्यों
में करीब 27 हजार युवाओं को रोजगार देने की बात भी सरकार करती आयी है.
लेकिन सच यह है कि इन 27 हजार में से एक हजार भी ऐसे नहीं हैं, जो रोजगार
कर रहे हैं. महज 10-12 हजार की नौकरी के लिए यहां के युवाओं ने दूसरे
राज्यों में जाना उचित नहीं समझा और वापस झारखंड लौट गए.
आदिवासी वोटरों में है गुस्सा
आदिवासी
समाज के बीच सरकार को लेकर जो मैसेज बीते चार साल में गया है, वो किसी से
छिपा नहीं है. झारखंड में आदिवासियों का वोट प्रतिशत करीब 27 फीसदी है.
किसी भी पार्टी को सत्ता में काबिज करने के लिए यह आंकड़ा काफी होता है.
सरकार बनने के बाद सीएनटी और एसपीटी एक्ट को लेकर सरकार ने जो भी संशोधन
करने की कोशिश की, उसका आदिवासी समाज ने पुरजोर विरोध किया. विरोध का असर
यह हुआ कि बहुमत वाली सरकार को आदिवासी समाज की आवाज के नीचे दबना पड़ा.
किसी तरह का कोई संशोधन सरकार चाह कर भी नहीं करवा सकी. भूमि अधिग्रहण बिल
भी पास कराने में राज्य से लेकर केंद्र तक विरोध हुआ. हालांकि इस बिल को
किसी तरह राज्य सरकार ने पास करवा लिया. पत्थलगढ़ी, कोचांग रेप कांड,
कैथोलिक गुरुओं की गिरफ्तारी, धर्म परिवर्तन कानून को लागू करते वक्त जिस
तरीके से आदिवासी समाज को टारगेट किया गया, उसका खामियाजा भी मौजूदा सरकार
को भुगतना पड़ सकता है. कई ऐसी चीजें दो सालों में हुई, जिससे आदिवासी समाज
का एक हिस्सा सत्ता से नाराज है.
स्थानीय नीति से आक्रोश
जिस
जल्दबाजी के साथ सरकार बनते ही स्थानीय नीति बनायी गयी. सरकार को उसका
क्रेडिट नहीं मिला. स्थानीय नीति जिस तरीके से सरकार ने परिभाषित की, उससे
सरकार के प्रति स्थानीय लोगों में गुस्सा है. विपक्ष स्थानीय नीति को आने
वाले चुनाव में अहम मुद्दा बनाने की तैयारी में है.
इवेंट वाली सरकार की छवि
सरकार
ने करोड़ों खर्च कर 2016 में मोमेंटम झारखंड का आयोजन किया. दावा किया कि
अरबों निवेश होगा और लाखों रोजगार लोगों को मिलेंगे. लेकिन जमीनी सच्चाई यह
है कि मोमेंटम झारखंड पूरी तरह से फेल हो गया. अब आरोप यह लग रहा है कि जो
सरकार अपने उद्यमियों को बिजली नहीं दे पा रही है, वो भला कैसे बाहर से
कंपनियों को निवेश के लिए झारखंड बुला सकती है. मोमेंटम झारखंड के बाद दावा
किया गया कि 210 कंपनियों से सरकार ने एमओयू किया. इनमें ऐसी कंपनियां
ज्यादातर थीं, जो एक लाख पूंजी वाली और महज छह महीने की तर्जुबे वाली थी.
एक भी कंपनी कहीं अपना उत्पादन शुरू नहीं कर पायी है. मोमेंटम झारखंड के
बाद सरकार ने एग्रीकल्चर समिट का आयोजन किया. यह समिट पतंजलि और बाबा
रामदेव के आस-पास आकर खत्म हो गयी. देखने वाली बात होगी कि इस समिट से यहां
के किसानों को कितना फायदा होता है.
No comments:
Post a Comment