झारखण्ड में 24 जिले है इनमे से 2016 में घोषित स्थानीय नीति के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र के 13 जिले( साहेबगंज, पाकुड़, दुमका, जामताड़ा, लातेहार, रांची, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां ) में अगले 10 वर्षो के लिए तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियां सिर्फ उसी जिले के लिए 100% आरक्षित कर दी गयी है साथ ही ये 13 अनुसूचित जिले के अभ्यर्थी अन्य सभी 11 गैर अनुसूचित जिले में भी आवेदन कर सकते है जैसे 13 अनुसूचित जिले में एक गुमला भी शामिल है
इस जिले में तृतीय और चतुर्थ वर्ग के नौकरियों के लिए सिर्फ गुमला जिले के स्थानीय लोग ही आवेदन कर सकते है इसी झारखण्ड राज्य के अन्य 23 जिले के स्थानीय अभ्यर्थी इसमें आवेदन नही कर सकते है जबकि गुमला जिले के लोग अपने जिले के साथ-साथ अन्य 11 गैर अनुसूचित जिले में भी आवेदन कर सकते है।
जबकि राज्य के 11 गैर अनुसूचित जिले( पलामू, गढ़वा, गोड्डा, देवघर, धनबाद, गिरिडीह, बोकारो, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़ और कोडरमा) के स्थानीय अभ्यर्थी अपने ही राज्य के 13 अनुसूचित जिले में तो आवेदन कर ही नही सकते है उलटे इन जिलों में आवेदन पुरे भारत से आएगा मतलब इन जिलों के अभ्यर्थियों का अपने ही राज्य में जॉब Opportunity बेहद कम हो गया बदले में अब अपने राज्य में भी नौकरी लेने के लिए पूरे भारत देश के अभ्यर्थियों से प्रतियोगिता करना पड़ेगा मतलब इन 11 गैर अनुसूचित जिले की नौकरियां को देश स्तरीय बना दिया गया है।
इससे गैर अनुसूचित जिले के अभ्यर्थियों को नौकरी लेना टेढ़ी खीर साबित होगी हालाँकि अनुसूचित जिले में भी कटऑफ वाले स्थानीय ही नौकरियां हड़पेंगे ............
इसी खतरनाक नीति के विरोध करने के लिए पलामू जिलेे के छात्रों और छात्र संगठनों ने (जिसमे ABVP भी शामिल था) मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान उनके सामने अपनी बात रखने की कोशिश की पर बड़ी बेरहमी से उनको पीटा गया ।
जैसे-जैसे राज्य के लोगों को इस गलत नीति का प्रभाव पता चलेगा लोग आंदोलित होंगे और जब अपने ही राज्य में इन 11 गैर अनुसूचित जिलों को उपेक्षित किया जा रहा है तो इन जिलों में यूनिटी बनेगी और लोग नये राज्य की मांग न करे उसके पहले ही इन जिलों में भी अनुसूचित जिलों जैसा स्थानीय नीति लागू किया जाय और 90 % नौकरियाँ उसी जिले के लिए आरक्षित किया जाय।
झारखण्ड में नीति निर्धारक अंग्रेजी मानसिकता के है बांटों और राज करो नीति को अपना रहे है.....
स्थानीय नीति में इन सभी खतरनाक त्रुटियों को तुरंत सुधारा नही गया तो झारखण्ड में गृह युद्द की संभावना और उपेक्षित जिलो को मिला कर नए राज्य की मांग से इंकार नही किया जा सकता है।
गौर कीजियेगा 11 गैर अनुसूचित जिले को झारखण्ड में रहने से क्या फायदा है , जब नीतिया बनाते समय इन जिलों के साथ सौतेला रवैया इस तरह अपनाया जा रहा है जैसे ये 11 राज्य में शामिल हैं ही नही....
****सोचियेगा बीजेपी की नीति तोड़ती है या जोड़ती है****
इस जिले में तृतीय और चतुर्थ वर्ग के नौकरियों के लिए सिर्फ गुमला जिले के स्थानीय लोग ही आवेदन कर सकते है इसी झारखण्ड राज्य के अन्य 23 जिले के स्थानीय अभ्यर्थी इसमें आवेदन नही कर सकते है जबकि गुमला जिले के लोग अपने जिले के साथ-साथ अन्य 11 गैर अनुसूचित जिले में भी आवेदन कर सकते है।
जबकि राज्य के 11 गैर अनुसूचित जिले( पलामू, गढ़वा, गोड्डा, देवघर, धनबाद, गिरिडीह, बोकारो, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़ और कोडरमा) के स्थानीय अभ्यर्थी अपने ही राज्य के 13 अनुसूचित जिले में तो आवेदन कर ही नही सकते है उलटे इन जिलों में आवेदन पुरे भारत से आएगा मतलब इन जिलों के अभ्यर्थियों का अपने ही राज्य में जॉब Opportunity बेहद कम हो गया बदले में अब अपने राज्य में भी नौकरी लेने के लिए पूरे भारत देश के अभ्यर्थियों से प्रतियोगिता करना पड़ेगा मतलब इन 11 गैर अनुसूचित जिले की नौकरियां को देश स्तरीय बना दिया गया है।
इससे गैर अनुसूचित जिले के अभ्यर्थियों को नौकरी लेना टेढ़ी खीर साबित होगी हालाँकि अनुसूचित जिले में भी कटऑफ वाले स्थानीय ही नौकरियां हड़पेंगे ............
इसी खतरनाक नीति के विरोध करने के लिए पलामू जिलेे के छात्रों और छात्र संगठनों ने (जिसमे ABVP भी शामिल था) मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान उनके सामने अपनी बात रखने की कोशिश की पर बड़ी बेरहमी से उनको पीटा गया ।
जैसे-जैसे राज्य के लोगों को इस गलत नीति का प्रभाव पता चलेगा लोग आंदोलित होंगे और जब अपने ही राज्य में इन 11 गैर अनुसूचित जिलों को उपेक्षित किया जा रहा है तो इन जिलों में यूनिटी बनेगी और लोग नये राज्य की मांग न करे उसके पहले ही इन जिलों में भी अनुसूचित जिलों जैसा स्थानीय नीति लागू किया जाय और 90 % नौकरियाँ उसी जिले के लिए आरक्षित किया जाय।
झारखण्ड में नीति निर्धारक अंग्रेजी मानसिकता के है बांटों और राज करो नीति को अपना रहे है.....
स्थानीय नीति में इन सभी खतरनाक त्रुटियों को तुरंत सुधारा नही गया तो झारखण्ड में गृह युद्द की संभावना और उपेक्षित जिलो को मिला कर नए राज्य की मांग से इंकार नही किया जा सकता है।
गौर कीजियेगा 11 गैर अनुसूचित जिले को झारखण्ड में रहने से क्या फायदा है , जब नीतिया बनाते समय इन जिलों के साथ सौतेला रवैया इस तरह अपनाया जा रहा है जैसे ये 11 राज्य में शामिल हैं ही नही....
****सोचियेगा बीजेपी की नीति तोड़ती है या जोड़ती है****
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