जालीसर्टिफिकेट पर कार्यरत 100 पारा शिक्षकों की अंतिम रूप से पहचान कर ली
गई है। अब तक की यह सबसे बड़ी कार्रवाई समझी जा रही है। फाइल तैयार कर अंतिम
मुहर के लिए डीसी के पास भेजी गई है।
वर्ष 2008 से शुरू हुई जांच प्रक्रिया इतनी धीमी चल रही है कि अंतिम परिणाम पर पहुंचने पर सवाल उठने लगे थे। पर डीसी उमाशंकर सिंह ने जांच प्रक्रिया को रफ्तार दी, इसी का परिणाम है कि पारा शिक्षकों के विरुद्ध अब तक की सबसे बडी कार्रवाई हाेने जा रही है। विदित हो कि जिले में फिलहाल सात हजार पारा शिक्षक कार्यरत है। जांच प्रक्रिया सभी के खिलाफ चल रही है। जानकारी के अनुसार अब तक तीन हजार पारा शिक्षकों के खिलाफ जांच प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। तीन हजार में ही सैकड़ों पारा शिक्षक संदिग्ध पाये गये है, पर बिहार बोर्ड से जो जांच रिपोर्ट आयी है उसमें कई प्रमाण-पत्र पर नाट फाउंड लिखा हुआ है। अब विभाग नाट फाउंड का मतलब निकालने में लगा है। संभवत: ऐसे सर्टिफिकेट को पुन: जांच के लिए भेजा जा सकता है।
पारा शिक्षक संघ की मानें तो 2008 से अब तक जांच के नाम पर तीन बार विभाग द्वारा राशि ली गई है। मिली जानकारी के अनुसार 2008-9, 2011-12 2013-14 में जांच के नाम पर विभाग द्वारा प्रति पारा शिक्षक 150-150 रुपए की राशि जमा करवायी गई है। जांच के नाम पर अब तक 31 लाख से अधिक राशि जमा करवायी गई है। राशि मैट्रिक, इंटर स्नातक के प्रमाण-पत्र की जांच के नाम पर ली गई है। 2008 में तात्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक सतीश चन्द्र सिंकू के कार्यकाल में जिले में जांच प्रक्रिया शुरू की गई थी। मिली जानकारी के अनुसार पीरटांड़, बिरनी जमुआ में ऐसे पारा शिक्षकों की सर्वाधिक संख्या है।
वसूली जाएगी मानदेय की पूरी राशि
नकलीसर्टिफिकेट पर कार्यरत गुरुजी से मानदेय की पूरी राशि वसूली जाएगी। मृदुला सिन्हा के शिक्षा सचिव रहते पूरे राज्य में पारा शिक्षकों के प्रमाण-पत्र की जांच प्रक्रिया शुरू हुई थी। पर नौ साल बाद भी जांच प्रक्रिया अंतिम चरण में नहीं पहुंच पायी है। वहीं नौकरी से निकाले जाने पर अब तक 36 पारा शिक्षकों से मानदेय के रूप में ली गई राशि की वसूली की जा चुकी है। ऐसे शिक्षकों पर जिले के विभिन्न थानों में एफआईआर की जा चुकी है। पर सोमवार की कार्रवाई सबसे बड़ी होगी। जिला शिक्षा अधीक्षक कमला सिंह की माने तो मानदेय की राशि नहीं जमा करने वाले पारा शिक्षकों के खिलाफ कुर्की जब्ती की कार्रवाई की जायेगी। विभागीय सूत्र की मानें तो नकली सर्टिफिकेट मामले में अठारह लोग जेल की हवा खा रहे है।
वर्ष 2008 से शुरू हुई जांच प्रक्रिया इतनी धीमी चल रही है कि अंतिम परिणाम पर पहुंचने पर सवाल उठने लगे थे। पर डीसी उमाशंकर सिंह ने जांच प्रक्रिया को रफ्तार दी, इसी का परिणाम है कि पारा शिक्षकों के विरुद्ध अब तक की सबसे बडी कार्रवाई हाेने जा रही है। विदित हो कि जिले में फिलहाल सात हजार पारा शिक्षक कार्यरत है। जांच प्रक्रिया सभी के खिलाफ चल रही है। जानकारी के अनुसार अब तक तीन हजार पारा शिक्षकों के खिलाफ जांच प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। तीन हजार में ही सैकड़ों पारा शिक्षक संदिग्ध पाये गये है, पर बिहार बोर्ड से जो जांच रिपोर्ट आयी है उसमें कई प्रमाण-पत्र पर नाट फाउंड लिखा हुआ है। अब विभाग नाट फाउंड का मतलब निकालने में लगा है। संभवत: ऐसे सर्टिफिकेट को पुन: जांच के लिए भेजा जा सकता है।
पारा शिक्षक संघ की मानें तो 2008 से अब तक जांच के नाम पर तीन बार विभाग द्वारा राशि ली गई है। मिली जानकारी के अनुसार 2008-9, 2011-12 2013-14 में जांच के नाम पर विभाग द्वारा प्रति पारा शिक्षक 150-150 रुपए की राशि जमा करवायी गई है। जांच के नाम पर अब तक 31 लाख से अधिक राशि जमा करवायी गई है। राशि मैट्रिक, इंटर स्नातक के प्रमाण-पत्र की जांच के नाम पर ली गई है। 2008 में तात्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक सतीश चन्द्र सिंकू के कार्यकाल में जिले में जांच प्रक्रिया शुरू की गई थी। मिली जानकारी के अनुसार पीरटांड़, बिरनी जमुआ में ऐसे पारा शिक्षकों की सर्वाधिक संख्या है।
वसूली जाएगी मानदेय की पूरी राशि
नकलीसर्टिफिकेट पर कार्यरत गुरुजी से मानदेय की पूरी राशि वसूली जाएगी। मृदुला सिन्हा के शिक्षा सचिव रहते पूरे राज्य में पारा शिक्षकों के प्रमाण-पत्र की जांच प्रक्रिया शुरू हुई थी। पर नौ साल बाद भी जांच प्रक्रिया अंतिम चरण में नहीं पहुंच पायी है। वहीं नौकरी से निकाले जाने पर अब तक 36 पारा शिक्षकों से मानदेय के रूप में ली गई राशि की वसूली की जा चुकी है। ऐसे शिक्षकों पर जिले के विभिन्न थानों में एफआईआर की जा चुकी है। पर सोमवार की कार्रवाई सबसे बड़ी होगी। जिला शिक्षा अधीक्षक कमला सिंह की माने तो मानदेय की राशि नहीं जमा करने वाले पारा शिक्षकों के खिलाफ कुर्की जब्ती की कार्रवाई की जायेगी। विभागीय सूत्र की मानें तो नकली सर्टिफिकेट मामले में अठारह लोग जेल की हवा खा रहे है।
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