नई दिल्ली : DNA में आज हम सबसे पहले जिस ख़बर का विश्लेषण कर रहे हैं, वो आपका मूड खराब कर सकती है। क्योंकि ये ख़बर देश के उस भविष्य से जुड़ी हुई है, जो नकल के सहारे आगे बढ़ रहा है।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, और हमारे भाग्यविधाता इन युवाओं के दम पर ही भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना देख रहे हैं। लेकिन जिस देश के छात्र बेईमानी से पास होते हों और जिस देश की नींव बेईमानी पर टिकी हो वहां ईमानदारी कहां से आएगी। जबतक हमारी युवा पीढ़ी नकल के जाल में फंसी रहेगी भारत कभी भी दुनिया का नेतृत्व नहीं कर सकता। इसलिए आज हम सबसे पहले इस ख़बर का विश्लेषण कर रहे हैं। इन दिनों पूरे देश में बोर्ड की परीक्षाएं हो रही हैं, लेकिन उत्तर भारत के कई राज्यों से परीक्षाओं में नकल की हैरान करने वाली तस्वीरें आ रही हैं।
आमतौर पर मीडिया में राजनीतिक ख़बरों पर ज़ोर दिया जाता है और नकल की तस्वीरों को छोटी-मोटी ख़बर बनाकर निपटा दिया जाता है लेकिन हमें लगता है कि ये सबसे बड़ी और चिंताजनक ख़बर है। क्योंकि ये देश की अगली पीढ़ी को खराब कर रही है। अगर इस ख़बर को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो फिर हमारे देश में ज्ञान की गंगा धीरे-धीरे सूख जाएगी। इसीलिए आज हम भारतीय शिक्षा व्यवस्था की नकल वाली बीमारी का DNA टेस्ट करेंगे।
आज हमारे पास देश के कई हिस्सों से नकल की हैरान करने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा भी शामिल हैं। सामूहिक नकल की ऐसी तस्वीरें देखकर हम हैरान थे। ये तस्वीरें देखकर हमारे मन में ये सवाल आया कि जब देश में इतने बड़े पैमाने पर परीक्षाओं में नकल होती हो, तो देश की शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल होगा? स्कूलों में हमेशा छात्रों को ये सिखाया जाता है कि 'Honesty is the best policy'लेकिन ये बात किताबों तक ही सीमित रह जाती है
ये तस्वीरें आज देश की शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हर उस व्यक्ति को देखनी चाहिए जिस पर देश का भविष्य तैयार करने की ज़िम्मेदारी है। ये ऐसी तस्वीरें हैं जिन पर आप या तो हैरान होंगे, या फिर हंसने लगेंगे लेकिन असल में ये रुलाने वाली तस्वीरें हैं। अगर देश के बच्चे नकल के सहारे पास होने लगेंगे, तो इस देश के भविष्य का क्या होगा? हमने उत्तर भारत के कई राज्यों में हो रही इस सामूहिक नकल पर आज एक रिपोर्ट भी तैयार की है, जो हम आपको आगे दिखाएंगे। लेकिन उससे पहले हम भारत की नकल वाली समस्या के मनोविज्ञान को डिकोड करेंगे।
परीक्षा के दौरान नकल करना भारत में कोई नई बात नहीं है और इसे समाज में काफी बुरी नज़र से देखा जाता है। इसके बावजूद नकल का उद्योग दशकों से देश के ज्यादातर हिस्सों में फल-फूल रहा है। और सरकारें नकल पर रोक लगाने की कोई कारगर कोशिश करती हुई नहीं दिख रही हैं। हर वर्ष सैकड़ों छात्र इसी तरीके से सामूहिक नकल करते हुए पकड़े जाते हैं, लेकिन फिर भी अभी तक इससे निपटने के लिए पर्याप्त कानूनों का अभाव है। भारत के उत्तरी राज्य यानी - बिहार उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान नकल की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
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परीक्षा में नकल कराना या नकल के सहारे पास करना अपने आप में एक बहुत बड़ा उद्योग बन चुका है। हिंदी भाषा बोलने वाली पूरी बेल्ट में इस उद्योग के केन्द्र फैले हुए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में नकल से पास कराने वाले केन्द्र बड़े ही व्यवस्थित तरीके से चल रहे हैं। कुछ लोग परीक्षा केंद्रों में नकल की सुविधा देने का ठेका प्राप्त कर लेते हैं। और ये संगठित उद्योग इसी तरह हर साल देश का भविष्य बर्बाद करता रहता है। अब आपको नकल की समस्या पर हमारा ये ओरिजिनल वीडियो विश्लेषण ध्यान से देखना चाहिए। ये ख़बर विश्वसनीयता के हर पैमाने पर खरी है.. हालांकि इससे जो बात निकलकर सामने आई है, उसने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है।
नकल की ऐसी ही हैरान करने वाली तस्वीरें आज से दो वर्ष पहले भी आई थीं। ये तस्वीरें बिहार के हाजीपुर की थीं, जहां बोर्ड परीक्षाओं में धड़ल्ले से नकल हो रही थी। इन तस्वीरों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को बहुत बदनाम किया था। और मुझे याद है कि उस दौरान कई विदेशी मीडिया ऑर्गनाइजेशन ने भी इन तस्वीरों को खूब दिखाया था। और ऐसी शर्मनाक तस्वीरों के बहाने भारत की शिक्षा व्यवस्था को भी बदनाम किया था।
देश के ज्यादातर राज्यों में बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। और पूरे देश में सबसे ज्यादा विद्यार्थी उत्तर प्रदेश में हैं। इस बार भी उत्तर प्रदेश में करीब 60 लाख से ज्यादा छात्र 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में परीक्षाओं में नकल का इतिहास बहुत पुराना है और यहां पूरे देश में नकल का सबसे बड़ा साम्राज्य है। नकल को बढ़ावा देने के आरोप समाजवादी पार्टी की सरकार पर भी लगते रहे हैं। अभी तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी, लेकिन जैसे ही 11 मार्च को चुनावी नतीजे आए और बीजेपी की जीत हुई। नकल के उद्योग में हड़कंप मच गया। और आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।
उत्तर प्रदेश में गुरुवार यानी कल से परीक्षाएं शुरू हुईं और कल ही करीब 1 लाख 62 हज़ार छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी। यानी ये छात्र परीक्षा देने नहीं आए। ऐसा माना जा रहा है कि इनमें ज्यादातर वो छात्र थे, जो नकल के सहारे पास होना चाहते थे। वैसे आपको बता दें कि 1992 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, तो सरकार परीक्षाओं में नकल के खिलाफ एक कानून लेकर आई थी। और सरकार ने नकल को गैर ज़मानती अपराध भी बना दिया था।
लेकिन जैसे ही 1994 में सरकार बदली और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने तुरंत नकल रोकने का ये कानून रद्द कर दिया था। वैसे भी मुलायम सिंह यादव अक्सर ये कहते रहे हैं कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था की हालत कितनी खराब है, ये बताने के लिए अब मैं आपको कुछ आंकड़े दिखाना चाहता हूं। भारत में 2016 की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के मुताबिक -
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 4 में से सिर्फ 3 छात्र ही दूसरी कक्षा की किताबें पढ़ सकते हैं। यानी आठवीं में पढ़ने वाले 25% छात्र ऐसे हैं, जो दूसरी कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाते हैं। और इसके बावजूद वो आठवीं में पढ़ते हैं। भारत में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 27 प्रतिशत बच्चे ही दो अंकों के घटाने के सवाल हल कर पाते हैं। भारत में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 26% छात्र ही गणित के सामान्य भाग देने के सवाल हल कर पाते हैं। भारत में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 24 प्रतिशत छात्र ही अंग्रेज़ी के सामान्य वाक्य पढ़ पाते हैं। भारत में सिर्फ 60 प्रतिशत छात्र ही कोई शब्द पढ़ने के बाद उसका अर्थ बता सकते हैं।
अब आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि जिस देश के छात्रों की बेसिक शिक्षा में ही इतनी बड़ी कमी हो, वो छात्र जब सीनियर क्लासेज में जाएगा, तो वो क्या करेगा? ज़ाहिर है वो आगे बढ़ने के लिए एक बार फिर नकल का सहारा लेगा। शायद इसीलिए हमारे देश में छात्र नकल को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। यहां नकल करने वाले छात्रों के अपवित्र रूट के बारे में भी आपको जानना चाहिए। ये छात्र पहले नकल करके परीक्षा पास करते हैं। फिर डोनेशन देकर कॉलेज में घुस जाते हैं। और अंत में रिश्वत देकर नौकरी प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे में सवाल ये है कि नकल करने वाले ऐसे छात्र अगर बड़े अधिकारी बन गए या किसी बड़े ओहदे पर बैठ गए तो फिर क्या होगा? ऐसे लोग अगर सिविल इंजीनियर बनकर आपके मकान का निर्माण करने लगे तो क्या होगा? ऐसे लोग अगर डॉक्टर बनकर आपका इलाज करने लगे तो क्या होगा? ऐसे लोग हमारे देश के भविष्य का कैसा निर्माण करेंगे? दुख की बात ये है कि सरकारी रिकॉर्ड्स में तो हमारी साक्षरता बढ़ रही है लेकिन असलियत में हमारी शिक्षा की क्वालिटी बहुत ही खराब है।
भारत में छात्र अगर परीक्षा में नकल को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं तो इसमें शिक्षा व्यवस्था का भी दोष है। इस हालत के लिए देश में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी वजह है सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत के प्राइमरी और सीनियर सेकेंड्री स्कूल्स में इस वक्त करीब 48 लाख 91 हज़ार शिक्षक हैं, जबकि करीब 59 लाख शिक्षक होने चाहिए, यानी देश में अभी भी 10 लाख से ज्यादा शिक्षकों की कमी है।
देश के 37 फीसदी स्कूलों में एक भी लैंग्वेज टीचर नहीं है। 31 प्रतिशत स्कूलों में सामाजिक विज्ञान का एक भी अध्यापक नहीं है। 29 फीसदी स्कूलों में गणित और विज्ञान का अध्यापक नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर 5 में से सिर्फ एक शिक्षक ही कुछ हद तक ट्रेंड होता है। ज़ाहिर है कि जब स्कूलों में शिक्षक ही नहीं होंगे तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन और बच्चे जब बिना पढ़े परीक्षा देंगे तो पास होने के लिए नकल का सहारा लेंगे। हमारे देश में शिक्षकों की भर्ती में घोटाला होता है और छात्रों के एडमिशन में भी घोटाला होता है और परीक्षाओं का हाल हमने अभी आपको दिखा ही दिया है यानी हमारी पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था ही अशुद्ध हो गई है।
जब देश के युवाओं को अच्छी शिक्षा ही नहीं मिलेगी तो बेरोज़गारी अपने आप बढ़ेगी। नकल की वजह से ही कॉलेज से डिग्रियां लेकर निकलने वाले युवा नौकरी करने के लायक ही नहीं बन पाते। एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले 85 प्रतिशत युवा किसी भी परिस्थिति में अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर सकते। सर्वे में 47 प्रतिशत शिक्षित युवा रोज़गार के लिए अयोग्य माने गए हैं जबकि 65 फीसदी युवा एक क्लर्क का काम भी नहीं कर सकते। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुके 97 फीसदी युवा अकाउंटिंग का काम सही तरीके से नहीं कर सकते। यहां तक कि देश के उच्च शिक्षित युवाओं में से 90 फीसदी को कामचलाऊ अंग्रेजी भी नहीं आती। आंकड़ों में ये तमाम युवा पढ़े लिखे कहलाएंगे ऐसे युवाओं को पढ़े लिखे युवाओं में गिना जाता होगा लेकिन ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जिसमें कोई गुणवत्ता ना हो।
अब आप खुद सोचिये की जब देश के पढ़े लिखे युवाओं की योग्यता का स्तर ऐसा होगा तो उन्हें कैसी नौकरी मिलेगी। हमारे देश की विडंबना ये है कि हम नकली घी, नकली बल्ब या कोई भी नकली प्रोडक्ट बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन नकली व्यक्ति और नकली प्रोफेशनल से हमें कोई दिक्कत नहीं होती। स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं में नकल करके पास होने से कुछ नहीं होता और अंत में हुनर ही काम आता है लेकिन हुनर के मामले में भारत के युवा बहुत ही ज्यादा पिछड़े हुए हैं।
-भारत में 15 से 25 वर्ष के सिर्फ 2 प्रतिशत युवा ही व्यवसायिक शिक्षा हासिल करते हैं।
-जबकि यूरोप में 80 फीसदी युवा अकेडमिक के साथ-साथ टेक्निकल एजुकेशन भी हासिल करते हैं।
-पूर्वी एशिया के देशों में 60 फीसदी युवा व्यवसायिक शिक्षा से जुड़ा कोई ना कोई कोर्स ज़रूर करते हैं।
-साउथ कोरिया में 96 फीसदी, जापान में 80 फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी और ब्रिटेन में 68 फीसदी युवा व्यवसायिक शिक्षा हासिल करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना बजट भी बढ़ाया है। इस बार केन्द्र सरकार ने शिक्षा के लिए कुल 79 हज़ार 685 करोड़ रुपये का बजट रखा है। जो GDP का 4% है। लेकिन हम अभी भी दुनिया के औसत से बहुत नीचे हैं। दुनिया में ज्यादातर देश अपने GDP का करीब 4.4 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं। दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील जैसे विकासशील देश अपने GDP का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं। अमेरिका भी GDP का 5.4 फीसदी हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च करता है। यानी अभी भारत को अमेरिका और बाकी देशों से मुकाबला करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना होगा क्योंकि शिक्षा ही देश में बदलाव का सबसे बड़ा ज़रिया है। वैसे यहां हम आपको ये भी बता दें कि दुनिया में नकलची देशों की कमी नहीं है। नकल सिर्फ़ भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था की बड़ी बीमारी है।
2014 में चीन के शियान शहर में एक राष्ट्रीय परीक्षा में 2440 छात्र पकड़े गए थे और इन्होंने नकल के लिए हाई-टेक साधनों का इस्तेमाल किया था। 2013 में चीन के ही दूसरे शहर में हो रही एक परीक्षा में जब नकल करने से छात्रों को रोका गया तो छात्रों के माता-पिता के गुस्से की वजह से वहां पर दंगे भड़क गए थे। छात्रों के माता-पिता का कहना था कि जब सभी नकल कर रहे हैं तो उनके बच्चे को क्यों रोका जा रहा है। 2013 में ब्रिटेन में 1368 छात्रों के नंबर नकल करने की वजह से काट दिए गए थे और 498 छात्रों को डिसक्वालीफायी कर दिया गया था जबकि 724 छात्रों को लिखित तौर पर चेतावनी दी गई थी। ब्रिटेन में 2009 से लेकर 2012 तक करीब 80 कॉलेज और स्कूलों के 45000 छात्रों को परीक्षा में गलत तरीके अपनाने का दोषी पाया गया था इसमें नकल करने से लेकर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने और नकल की सुविधा प्राप्त करने के लिए निजी फर्म को पैसा देने की बात शामिल है। 2013 में अमेरिका की हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी में 125 छात्रों को नकल का दोषी पाया गया था।
हमारे देश को ईमानदारों का देश कहा जाता है। हमारे देश के लोगों को नैतिकता का पालन करने के लिए जाना जाता है, हमारे पौराणिक ग्रंथ ईमानदारी और अच्छे आचरण के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। पुराने ज़माने में अपने वचन की रक्षा के लिए लोग वनवास के लिए चले जाते थे लेकिन उसी भारतवर्ष में आज ईमानदारी का नहीं बल्कि बेईमानी का साम्राज्य है।
भारत में 20 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या 54 करोड़ है। ये भारत की कुल आबादी का 41 प्रतिशत है। सवाल ये है कि क्या अब ये मान लिया जाए कि इनमें से ज़्यादातर छात्र नकल और बेईमानी के दम पर पास हो रहे हैं। इसका मतलब ये भी है कि हमारे देश की एक पूरी पीढ़ी बेईमानी की तरफ बढ़ चुकी है।ये एक बहुत ही ख़तरनाक संकेत है। यहां हम देश के हर माता पिता से ये अपील करना चाहते हैं कि आप अपने बच्चों को नकल करने से रोकें और उन्हें परीक्षाओं के लिए पूरी ईमानदारी के साथ तैयारी करने के लिए कहें। परिश्रम का फल हमेशा मीठा होता है और आज इस ज़माने में भी ये बात पूरी तरह सही है।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, और हमारे भाग्यविधाता इन युवाओं के दम पर ही भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना देख रहे हैं। लेकिन जिस देश के छात्र बेईमानी से पास होते हों और जिस देश की नींव बेईमानी पर टिकी हो वहां ईमानदारी कहां से आएगी। जबतक हमारी युवा पीढ़ी नकल के जाल में फंसी रहेगी भारत कभी भी दुनिया का नेतृत्व नहीं कर सकता। इसलिए आज हम सबसे पहले इस ख़बर का विश्लेषण कर रहे हैं। इन दिनों पूरे देश में बोर्ड की परीक्षाएं हो रही हैं, लेकिन उत्तर भारत के कई राज्यों से परीक्षाओं में नकल की हैरान करने वाली तस्वीरें आ रही हैं।
आमतौर पर मीडिया में राजनीतिक ख़बरों पर ज़ोर दिया जाता है और नकल की तस्वीरों को छोटी-मोटी ख़बर बनाकर निपटा दिया जाता है लेकिन हमें लगता है कि ये सबसे बड़ी और चिंताजनक ख़बर है। क्योंकि ये देश की अगली पीढ़ी को खराब कर रही है। अगर इस ख़बर को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो फिर हमारे देश में ज्ञान की गंगा धीरे-धीरे सूख जाएगी। इसीलिए आज हम भारतीय शिक्षा व्यवस्था की नकल वाली बीमारी का DNA टेस्ट करेंगे।
आज हमारे पास देश के कई हिस्सों से नकल की हैरान करने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा भी शामिल हैं। सामूहिक नकल की ऐसी तस्वीरें देखकर हम हैरान थे। ये तस्वीरें देखकर हमारे मन में ये सवाल आया कि जब देश में इतने बड़े पैमाने पर परीक्षाओं में नकल होती हो, तो देश की शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल होगा? स्कूलों में हमेशा छात्रों को ये सिखाया जाता है कि 'Honesty is the best policy'लेकिन ये बात किताबों तक ही सीमित रह जाती है
ये तस्वीरें आज देश की शिक्षा व्यवस्था से जुड़े हर उस व्यक्ति को देखनी चाहिए जिस पर देश का भविष्य तैयार करने की ज़िम्मेदारी है। ये ऐसी तस्वीरें हैं जिन पर आप या तो हैरान होंगे, या फिर हंसने लगेंगे लेकिन असल में ये रुलाने वाली तस्वीरें हैं। अगर देश के बच्चे नकल के सहारे पास होने लगेंगे, तो इस देश के भविष्य का क्या होगा? हमने उत्तर भारत के कई राज्यों में हो रही इस सामूहिक नकल पर आज एक रिपोर्ट भी तैयार की है, जो हम आपको आगे दिखाएंगे। लेकिन उससे पहले हम भारत की नकल वाली समस्या के मनोविज्ञान को डिकोड करेंगे।
परीक्षा के दौरान नकल करना भारत में कोई नई बात नहीं है और इसे समाज में काफी बुरी नज़र से देखा जाता है। इसके बावजूद नकल का उद्योग दशकों से देश के ज्यादातर हिस्सों में फल-फूल रहा है। और सरकारें नकल पर रोक लगाने की कोई कारगर कोशिश करती हुई नहीं दिख रही हैं। हर वर्ष सैकड़ों छात्र इसी तरीके से सामूहिक नकल करते हुए पकड़े जाते हैं, लेकिन फिर भी अभी तक इससे निपटने के लिए पर्याप्त कानूनों का अभाव है। भारत के उत्तरी राज्य यानी - बिहार उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान नकल की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
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परीक्षा में नकल कराना या नकल के सहारे पास करना अपने आप में एक बहुत बड़ा उद्योग बन चुका है। हिंदी भाषा बोलने वाली पूरी बेल्ट में इस उद्योग के केन्द्र फैले हुए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के कई ज़िलों में नकल से पास कराने वाले केन्द्र बड़े ही व्यवस्थित तरीके से चल रहे हैं। कुछ लोग परीक्षा केंद्रों में नकल की सुविधा देने का ठेका प्राप्त कर लेते हैं। और ये संगठित उद्योग इसी तरह हर साल देश का भविष्य बर्बाद करता रहता है। अब आपको नकल की समस्या पर हमारा ये ओरिजिनल वीडियो विश्लेषण ध्यान से देखना चाहिए। ये ख़बर विश्वसनीयता के हर पैमाने पर खरी है.. हालांकि इससे जो बात निकलकर सामने आई है, उसने पूरे देश को चिंता में डाल दिया है।
नकल की ऐसी ही हैरान करने वाली तस्वीरें आज से दो वर्ष पहले भी आई थीं। ये तस्वीरें बिहार के हाजीपुर की थीं, जहां बोर्ड परीक्षाओं में धड़ल्ले से नकल हो रही थी। इन तस्वीरों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को बहुत बदनाम किया था। और मुझे याद है कि उस दौरान कई विदेशी मीडिया ऑर्गनाइजेशन ने भी इन तस्वीरों को खूब दिखाया था। और ऐसी शर्मनाक तस्वीरों के बहाने भारत की शिक्षा व्यवस्था को भी बदनाम किया था।
देश के ज्यादातर राज्यों में बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। और पूरे देश में सबसे ज्यादा विद्यार्थी उत्तर प्रदेश में हैं। इस बार भी उत्तर प्रदेश में करीब 60 लाख से ज्यादा छात्र 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में परीक्षाओं में नकल का इतिहास बहुत पुराना है और यहां पूरे देश में नकल का सबसे बड़ा साम्राज्य है। नकल को बढ़ावा देने के आरोप समाजवादी पार्टी की सरकार पर भी लगते रहे हैं। अभी तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ही सरकार थी, लेकिन जैसे ही 11 मार्च को चुनावी नतीजे आए और बीजेपी की जीत हुई। नकल के उद्योग में हड़कंप मच गया। और आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।
उत्तर प्रदेश में गुरुवार यानी कल से परीक्षाएं शुरू हुईं और कल ही करीब 1 लाख 62 हज़ार छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी। यानी ये छात्र परीक्षा देने नहीं आए। ऐसा माना जा रहा है कि इनमें ज्यादातर वो छात्र थे, जो नकल के सहारे पास होना चाहते थे। वैसे आपको बता दें कि 1992 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, तो सरकार परीक्षाओं में नकल के खिलाफ एक कानून लेकर आई थी। और सरकार ने नकल को गैर ज़मानती अपराध भी बना दिया था।
लेकिन जैसे ही 1994 में सरकार बदली और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने तुरंत नकल रोकने का ये कानून रद्द कर दिया था। वैसे भी मुलायम सिंह यादव अक्सर ये कहते रहे हैं कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था की हालत कितनी खराब है, ये बताने के लिए अब मैं आपको कुछ आंकड़े दिखाना चाहता हूं। भारत में 2016 की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के मुताबिक -
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 4 में से सिर्फ 3 छात्र ही दूसरी कक्षा की किताबें पढ़ सकते हैं। यानी आठवीं में पढ़ने वाले 25% छात्र ऐसे हैं, जो दूसरी कक्षा की किताब भी नहीं पढ़ पाते हैं। और इसके बावजूद वो आठवीं में पढ़ते हैं। भारत में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 27 प्रतिशत बच्चे ही दो अंकों के घटाने के सवाल हल कर पाते हैं। भारत में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 26% छात्र ही गणित के सामान्य भाग देने के सवाल हल कर पाते हैं। भारत में पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ 24 प्रतिशत छात्र ही अंग्रेज़ी के सामान्य वाक्य पढ़ पाते हैं। भारत में सिर्फ 60 प्रतिशत छात्र ही कोई शब्द पढ़ने के बाद उसका अर्थ बता सकते हैं।
अब आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि जिस देश के छात्रों की बेसिक शिक्षा में ही इतनी बड़ी कमी हो, वो छात्र जब सीनियर क्लासेज में जाएगा, तो वो क्या करेगा? ज़ाहिर है वो आगे बढ़ने के लिए एक बार फिर नकल का सहारा लेगा। शायद इसीलिए हमारे देश में छात्र नकल को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। यहां नकल करने वाले छात्रों के अपवित्र रूट के बारे में भी आपको जानना चाहिए। ये छात्र पहले नकल करके परीक्षा पास करते हैं। फिर डोनेशन देकर कॉलेज में घुस जाते हैं। और अंत में रिश्वत देकर नौकरी प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे में सवाल ये है कि नकल करने वाले ऐसे छात्र अगर बड़े अधिकारी बन गए या किसी बड़े ओहदे पर बैठ गए तो फिर क्या होगा? ऐसे लोग अगर सिविल इंजीनियर बनकर आपके मकान का निर्माण करने लगे तो क्या होगा? ऐसे लोग अगर डॉक्टर बनकर आपका इलाज करने लगे तो क्या होगा? ऐसे लोग हमारे देश के भविष्य का कैसा निर्माण करेंगे? दुख की बात ये है कि सरकारी रिकॉर्ड्स में तो हमारी साक्षरता बढ़ रही है लेकिन असलियत में हमारी शिक्षा की क्वालिटी बहुत ही खराब है।
भारत में छात्र अगर परीक्षा में नकल को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं तो इसमें शिक्षा व्यवस्था का भी दोष है। इस हालत के लिए देश में शिक्षकों की कमी सबसे बड़ी वजह है सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत के प्राइमरी और सीनियर सेकेंड्री स्कूल्स में इस वक्त करीब 48 लाख 91 हज़ार शिक्षक हैं, जबकि करीब 59 लाख शिक्षक होने चाहिए, यानी देश में अभी भी 10 लाख से ज्यादा शिक्षकों की कमी है।
देश के 37 फीसदी स्कूलों में एक भी लैंग्वेज टीचर नहीं है। 31 प्रतिशत स्कूलों में सामाजिक विज्ञान का एक भी अध्यापक नहीं है। 29 फीसदी स्कूलों में गणित और विज्ञान का अध्यापक नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में हर 5 में से सिर्फ एक शिक्षक ही कुछ हद तक ट्रेंड होता है। ज़ाहिर है कि जब स्कूलों में शिक्षक ही नहीं होंगे तो बच्चों को पढ़ाएगा कौन और बच्चे जब बिना पढ़े परीक्षा देंगे तो पास होने के लिए नकल का सहारा लेंगे। हमारे देश में शिक्षकों की भर्ती में घोटाला होता है और छात्रों के एडमिशन में भी घोटाला होता है और परीक्षाओं का हाल हमने अभी आपको दिखा ही दिया है यानी हमारी पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था ही अशुद्ध हो गई है।
जब देश के युवाओं को अच्छी शिक्षा ही नहीं मिलेगी तो बेरोज़गारी अपने आप बढ़ेगी। नकल की वजह से ही कॉलेज से डिग्रियां लेकर निकलने वाले युवा नौकरी करने के लायक ही नहीं बन पाते। एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले 85 प्रतिशत युवा किसी भी परिस्थिति में अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर सकते। सर्वे में 47 प्रतिशत शिक्षित युवा रोज़गार के लिए अयोग्य माने गए हैं जबकि 65 फीसदी युवा एक क्लर्क का काम भी नहीं कर सकते। कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुके 97 फीसदी युवा अकाउंटिंग का काम सही तरीके से नहीं कर सकते। यहां तक कि देश के उच्च शिक्षित युवाओं में से 90 फीसदी को कामचलाऊ अंग्रेजी भी नहीं आती। आंकड़ों में ये तमाम युवा पढ़े लिखे कहलाएंगे ऐसे युवाओं को पढ़े लिखे युवाओं में गिना जाता होगा लेकिन ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जिसमें कोई गुणवत्ता ना हो।
अब आप खुद सोचिये की जब देश के पढ़े लिखे युवाओं की योग्यता का स्तर ऐसा होगा तो उन्हें कैसी नौकरी मिलेगी। हमारे देश की विडंबना ये है कि हम नकली घी, नकली बल्ब या कोई भी नकली प्रोडक्ट बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन नकली व्यक्ति और नकली प्रोफेशनल से हमें कोई दिक्कत नहीं होती। स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं में नकल करके पास होने से कुछ नहीं होता और अंत में हुनर ही काम आता है लेकिन हुनर के मामले में भारत के युवा बहुत ही ज्यादा पिछड़े हुए हैं।
-भारत में 15 से 25 वर्ष के सिर्फ 2 प्रतिशत युवा ही व्यवसायिक शिक्षा हासिल करते हैं।
-जबकि यूरोप में 80 फीसदी युवा अकेडमिक के साथ-साथ टेक्निकल एजुकेशन भी हासिल करते हैं।
-पूर्वी एशिया के देशों में 60 फीसदी युवा व्यवसायिक शिक्षा से जुड़ा कोई ना कोई कोर्स ज़रूर करते हैं।
-साउथ कोरिया में 96 फीसदी, जापान में 80 फीसदी, जर्मनी में 75 फीसदी और ब्रिटेन में 68 फीसदी युवा व्यवसायिक शिक्षा हासिल करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना बजट भी बढ़ाया है। इस बार केन्द्र सरकार ने शिक्षा के लिए कुल 79 हज़ार 685 करोड़ रुपये का बजट रखा है। जो GDP का 4% है। लेकिन हम अभी भी दुनिया के औसत से बहुत नीचे हैं। दुनिया में ज्यादातर देश अपने GDP का करीब 4.4 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं। दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील जैसे विकासशील देश अपने GDP का 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करते हैं। अमेरिका भी GDP का 5.4 फीसदी हिस्सा एजुकेशन सेक्टर पर खर्च करता है। यानी अभी भारत को अमेरिका और बाकी देशों से मुकाबला करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना होगा क्योंकि शिक्षा ही देश में बदलाव का सबसे बड़ा ज़रिया है। वैसे यहां हम आपको ये भी बता दें कि दुनिया में नकलची देशों की कमी नहीं है। नकल सिर्फ़ भारत की ही नहीं पूरी दुनिया की शिक्षा व्यवस्था की बड़ी बीमारी है।
2014 में चीन के शियान शहर में एक राष्ट्रीय परीक्षा में 2440 छात्र पकड़े गए थे और इन्होंने नकल के लिए हाई-टेक साधनों का इस्तेमाल किया था। 2013 में चीन के ही दूसरे शहर में हो रही एक परीक्षा में जब नकल करने से छात्रों को रोका गया तो छात्रों के माता-पिता के गुस्से की वजह से वहां पर दंगे भड़क गए थे। छात्रों के माता-पिता का कहना था कि जब सभी नकल कर रहे हैं तो उनके बच्चे को क्यों रोका जा रहा है। 2013 में ब्रिटेन में 1368 छात्रों के नंबर नकल करने की वजह से काट दिए गए थे और 498 छात्रों को डिसक्वालीफायी कर दिया गया था जबकि 724 छात्रों को लिखित तौर पर चेतावनी दी गई थी। ब्रिटेन में 2009 से लेकर 2012 तक करीब 80 कॉलेज और स्कूलों के 45000 छात्रों को परीक्षा में गलत तरीके अपनाने का दोषी पाया गया था इसमें नकल करने से लेकर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने और नकल की सुविधा प्राप्त करने के लिए निजी फर्म को पैसा देने की बात शामिल है। 2013 में अमेरिका की हॉरवर्ड यूनिवर्सिटी में 125 छात्रों को नकल का दोषी पाया गया था।
हमारे देश को ईमानदारों का देश कहा जाता है। हमारे देश के लोगों को नैतिकता का पालन करने के लिए जाना जाता है, हमारे पौराणिक ग्रंथ ईमानदारी और अच्छे आचरण के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। पुराने ज़माने में अपने वचन की रक्षा के लिए लोग वनवास के लिए चले जाते थे लेकिन उसी भारतवर्ष में आज ईमानदारी का नहीं बल्कि बेईमानी का साम्राज्य है।
भारत में 20 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या 54 करोड़ है। ये भारत की कुल आबादी का 41 प्रतिशत है। सवाल ये है कि क्या अब ये मान लिया जाए कि इनमें से ज़्यादातर छात्र नकल और बेईमानी के दम पर पास हो रहे हैं। इसका मतलब ये भी है कि हमारे देश की एक पूरी पीढ़ी बेईमानी की तरफ बढ़ चुकी है।ये एक बहुत ही ख़तरनाक संकेत है। यहां हम देश के हर माता पिता से ये अपील करना चाहते हैं कि आप अपने बच्चों को नकल करने से रोकें और उन्हें परीक्षाओं के लिए पूरी ईमानदारी के साथ तैयारी करने के लिए कहें। परिश्रम का फल हमेशा मीठा होता है और आज इस ज़माने में भी ये बात पूरी तरह सही है।
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