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115 शिक्षकों की माली हालत खराब, 50 से अधिक शिक्षकों ने मांगी इच्छा मृत्यु

जमशेदपुर। घाटशिला के 50 से अधिक शिक्षकों ने मांगी इच्छा मृत्यु घाटशिला के 50 से अधिक शिक्षकों ने मांगी इच्छा मृत्यु घाटशिला के एचसीएल-आइसीसी के 115 शिक्षकों की माली हालत बेहद खराब है। आर्थिक तंगी के बीच 15 शिक्षकों की मौत हो चुकी है। वहीं पांच बीमार हैं।
घाटशिला के एचसीएल-आइसीसी ( हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड-इंडियन कॉपर कांप्लेक्स ) के 115 शिक्षकों की माली हालत बेहद खराब है। आर्थिक तंगी के बीच 15 शिक्षकों की मौत हो चुकी है। पांच बीमार हैं। इनमें दो की हालत गंभीर बनी हुई है। कब सांस थम जाए, पता नहीं। शिक्षकों की उम्र 55 वर्ष से अधिक हो गई है।
अपनी ही जिंदगी से परेशान करीब 50 शिक्षक इच्छा मृत्यु मांग रहे हैं। दो सिंतबर 2002 को ही एचसीएल-आइसीसी कंपनी ने अपनी खराब आर्थिक स्थिति को कारण बताते हुए सभी माइंस समेत विद्यालयों को बंद कर दिया था। उस समय कंपनी के कर्मचारियों को वीआरएस के तहत भुगतान कर कार्य से बैठाया गया लेकिन शिक्षकों को एक रुपया तक नहीं दिया गया।
शिक्षक बिना वेतन के ही वर्ष 2011 तक पढ़ाते रहे। ये आज भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं लेकिन इनकी फरियाद कोई सुनने वाला नहीं है। शिक्षक विप्लव प्रसाद सिंह ने बताया कि आज एचसीएल -आइसीसी कंपनी ने फिर से बंद पड़ी माइंस खोल दी। मजदूरों को दोबारा रोजगार मिल रहा है, लेकिन शिक्षकों के बारे में कोई सोच नहीं रहा, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इन स्कूलों में खपा दी।
अदालत भी बीते 15 सालों से शिक्षकों को सिर्फ तारीख पर तारीख दे रही है। वहीं शिक्षक गणेश चौधरी ने बताया कि उनके साथ कई शिक्षकों ने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और न्यायालय से इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है। तिल-तिल कर मरने से अच्छा है, एक बार ही मर जाना। बीमार पांच शिक्षकों में एमएन मन्ना, संजीवन दत्ता, एचएन प्रमाणिक, एसएन शर्मा, सीडी महतो और मनोज नारायण सिंह हैं। इनमें संजीवन एवं प्रमाणिक की हालत गंभीर है।
क्या है पूरा मामला
वर्ष 1932 से एचसीएल-आइसीसी के कुल छह विद्यालय संचालित थे। इनमें दो मुसाबनी, दो सुरदा और दो मउभंडार में थे। इन स्कूलों में कुल 115 शिक्षक कार्यरत थे। उस समय से लेकर कई वर्षों तक शिक्षकों का वेतन व विद्यालय का खर्च कंपनी उठाती थी लेकिन वर्ष 2001 में गर्मी छुट्टी के समय कंपनी ने 30 शिक्षकों को काम से बैठा दिया।
अन्य शिक्षकों को भी काम छोडऩे के लिए कहा गया। इसी वर्ष कुछ शिक्षकों ने न्यायालय से गुहार लगाई। इसपर हाई कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया कि वर्ष 2003 तक शिक्षकों को पढ़ाने दिया जाए। यह भी आश्वस्त किया गया कि 2003 तक फैसला सुना दिया जायेगा। इस बीच दो सिंतबर 2002 को कंपनी ने अपनी खराब आर्थिक स्थिति को कारण बताते हुए सभी माइंस समेत विद्यालयों को बंद कर दिया।
इनका कहना है......
न्याय की आस में 15 साल बीत गए, घर बर्बादी के कगार पर पहुंच गया। कई शिक्षकों की बेटी की शादी नहीं हो पायी। बेटों की पढ़ाई बंद हो गई। अब घर में दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। ऐसी हालत में उनके पास इच्छा मृत्यु के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है।

विमला देवी, शिक्षिका, मुसाबनी।

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