चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सरकार सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) तथा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) की केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से कई स्तरों पर अध्यापकों के नियमित सेवाकालीन प्रशिक्षण, नए भर्ती अध्यापकों के लिये प्रवेश प्रशिक्षण, आईसीटी कोम्पोनेंट पर प्रशिक्षण, विस्तृत शिक्षा, लैंगिक संवेदनशीलता, तथा किशोरावस्था शिक्षा सहित गुणवत्ता सुधार के लिये राज्यों तथा संघ शासित प्रदेशों की मदद करती है।
सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए)
- सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) के अंतर्गत राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रशासनों को शैक्षिक मानकों में सुधार की कई पहलों के लिये समर्थन दिया गया है।
- इनमें नियमित इन-सर्विस टीचर्स ट्रेनिंग, नई भर्ती किये गए शिक्षकों के लिये इंडक्शन ट्रेनिंग, व्यावसायिक योग्यता प्राप्त करने के लिये गैर-प्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण, छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार के लिये अतिरिक्त शिक्षक, ब्लॉक और क्लस्टर रिसोर्स सेंटर के ज़रिये शिक्षकों हेतु शैक्षिक सहायता, छात्रों की क्षमता को मापने में शिक्षकों को सक्षम बनाने के लिये लगातार और व्यापक मूल्यांकन तथा आवश्यकतानुसार सुधार करना साथ ही उचित शिक्षण-संबंधी सामग्री विकसित करने के लिये शिक्षक और स्कूल के लिये अनुदान आदि मुद्दों को शामिल किया गया हैं।
- एसएसए के अंतर्गत प्राथमिक स्तर पर 150 रुपये प्रति बच्चे और उच्च प्राथमिक स्तर पर 250 रूपये प्रति बच्चे की अधिकतम सीमा में सरकारी/स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में सभी बच्चों को पाठ्यपुस्तकें प्रदान की जाती हैं।
- इनमें राज्य पाठ्यक्रम शुरू करने के इच्छुक मदरसे भी शामिल हैं।
- एसएसए के तहत वंचित समुदायों के बच्चों अर्थात् सभी लड़कियों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और गरीबी रेखा से नीचे के लड़कों को चार सौ रुपए प्रति व्यक्ति की दर से दो जोड़े यूनिफॉर्म भी दी जाती है।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान
- इस योजना में नौ से बारहवीं कक्षा तक सामान्य शैक्षिक विषयों के साथ ही खुदरा व्यापार, ऑटोमोबाइल, कृषि, दूरसंचार, स्वास्थ्य देखभाल, ब्यूटी एंड वेलनेस, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स, सुरक्षा, मीडिया और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों के रोज़गारोन्मुख व्यावसायिक विषय शुरू किये गए है।
- माध्यमिक स्तर पर छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने के लिये आरएमएसए के अंतर्गत विभिन्न पहलों को वित्तीय सहायता दी गई है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं-
► छात्र- शिक्षक अनुपात में सुधार के लिये अतिरिक्त शिक्षक
► शिक्षकों और प्रधानाचार्यों के लिये नेतृत्व प्रशिक्षण सहित इंडक्शन और इन-सर्विस ट्रेनिंग
► गणित और विज्ञान किट
► स्कूल में आईसीटी सुविधाएँ
► प्रयोगशाला उपकरण
► सीखने को बढ़ावा देने के लिये विशेष प्रशिक्षण - एसएसए तथा आरएमएसए दोनों के तहत प्राथमिक तथा माध्यमिक दोनों अध्यापकों को उनकी पेशेवर उन्नति के लिये विशिष्ट विषयक, आवश्यकता आधारित तथा अध्यापकीय सेवाकाल के दौरान सुसंगत प्रशिक्षण देने पर ध्यान केंद्रित है।
- इसके अलावा, माध्यमिक स्तर पर स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये आरएमएसए के तहत प्रेरणा तथा जागृति कार्यक्रम, सुधारात्मक शिक्षा जैसी नई पद्धतियों को भी उपयोग में लाया जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त, ज़िला स्तर पर विज्ञान मेला/प्रदर्शनी तथा प्रतिभा खोज, स्कूलों को गणित और विज्ञान किट्स, विद्यार्थियों द्वारा उच्चतर संस्थानों का भ्रमण तथा विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन जैसी नई पद्धतियाँ भी स्वीकृत की गई है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम
- 2 दिसंबर, 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया और इसके अनुच्छेद 21ए के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है।
- इस मूल अधिकार के क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2009 में भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक युगांतकारी कदम उठाते हुए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (the Right of Children to Free and Compulsory Education Act) पारित किया।
- इसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक समावेशन को बढ़ावा देना तथा माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन के नए अवसर सृजित करना है।
- इसके तहत 6-14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में अंगीकृत किया गया।
- शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत 25 फीसदी सीटें गरीब तबके के बच्चों के लिये आरक्षित करना एक अनिवार्य शर्त है|
- इसके अतिरिक्त शिक्षक एवं बच्चों का उच्च अनुपात, स्कूलों के भवन एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं हेतु उच्च स्तरीय व्यवस्थाएँ करना, शिक्षकों एवं स्कूल के अन्य कर्मचारियों के लिये काम के घंटे तय करना इत्यादि के विषय में उपयुक्त व्यवस्था की गई है|
- तथापि, इसके अंतर्गत बच्चों के सीखने की प्रवृत्ति एवं शिक्षकों के अध्यापन संबंधी प्रदर्शन के विषय में कोई आवश्यक प्रबंध नहीं किया गया है|
- इस अधिनियम के अनुपालन की अनिवार्यता संबंधी प्रावधान का प्रभाव यह हुआ कि निजी स्कूलों के संचालन के रूप में शिक्षा का व्यवसाय कर रहे कुछ निजी स्कूल या तो स्वयं बंद हो गए या फिर उन्हें नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में स्कूल बंद करने का नोटिस दे दिया गया|
- हालाँकि, सरकारी स्कूलों पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ| यही स्थिति अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित स्कूलों की भी रही क्योंकि आर.टी.ई. के दायरे से बाहर होने के कारण उन पर भी इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा|
- केंद्र सरकार, राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के साथ, शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के मानदंड़ों के कार्यान्वयन तथा अध्यापकों की शीघ्र भर्ती तथा पुनर्नियोजन के मामले विभिन्न मंचों से निरंतर उठाती रही है।
- शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मानदंडों के कार्यान्वयन तथा अध्यापकों के पुनर्नियोजन के लिये समय-समय पर राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को परामर्शी भी जारी की हैं ताकि यह सुनिश्चित हो कि सभी स्कूल अध्यापक पारदर्शी नीति के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने में पर्याप्त समय खर्च कर रहे हैं।
स्कूली शिक्षा को गुणात्मक बनाने हेतु आवश्यक उपाय
- इसके अलावा, सरकार ने स्कूली शिक्षा को गुणात्मक बनाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये है-
► स्कूली शिक्षा में सर्वोत्तम अभ्यास कोष का सृजन तथा एसएसए के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये शगुन पोर्टल शुरू किया गया है।
► लड़कियों तथा लड़कों के लिये प्रत्येक स्कूल में अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था के लिये स्वच्छ विद्यालय अभियान।
► स्वच्छ विद्यालय पहल के अगले कदम के रूप में ज़िला, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर 2016-17 से स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार की स्थापना की गई है।
► कक्षा 1 तथा 2 के विद्यार्थी समझ-बुझ से पढ़ सकें तथा उन्हें मूल गणना कौशल प्राप्त हो, इसके सुनिश्चय के लिये 2014 में ‘पढ़े भारत बढ़े भारत’ की शुरुआत की गई।
► 6-18 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों को विज्ञान, गणित तथा प्रौद्योगिकी के अध्ययन के लिये प्रेरित करने हेतु 2015 में राष्ट्रीय आविष्कार अभियान शुरू किया गया।
► सभी बच्चे उचित बौद्धिक स्तर हासिल कर सकें इसके सुनिश्चय के लिये श्रेणीवार, विषयवार बौद्धिक परिणामों का संदर्भ शामिल करने के लिये फरवरी 2017 में निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा अधिकार (आरटीई) अधिनियम में संशोधन किया गया।
► शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 23(2) को अगस्त 2017 में संशोधित किया गया है जिसके अंतर्गत अप्रशिक्षित प्राथमिक अध्यापकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण की अवधि 31 मार्च, 2019 तक बढ़ाई गई है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी अध्यापक शैक्षणिक प्राधिकरण द्वारा यथा-निर्धारित न्यूनतम अर्हता प्राप्त कर रहे हैं।
► एनसीईआरटी, एससीईआरटी/एसआईई, राज्य बोर्डों आदि द्वारा तैयार की गई ई-पुस्तकों सहित ई-संसाधनों के प्रसार के लिये नवंबर 2015 में ई-पाठशाला नामक वेब-पोर्टल (http://epathshala.gov.in/) तथा मोबाइल एप (एंडरायड आई-ओएस तथा विंडोज़) शुरू की गई है।
► स्कूलों के मूल्यांकन के लिये नवंबर 2015 में शुरू की गई शाला सिद्धि एक व्यापक माध्यम है जिससे स्कूलों में सुधारात्मक कार्यवाही की जा रही है।
► माध्यमिक स्तर पर स्कूली विद्यार्थियों की कलात्मक प्रतिभा के पोषण तथा प्रदर्शन द्वारा शिक्षा में कला के वर्धन के लिये कला उत्सव कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।
► आरएमएसए के ऑनलाइन प्रबन्ध तथा निगरानी के लिये ऑनलाइन परियोजना निगरानी प्रणाली (पीएमएस) अगस्त 2014 से शुरू की है।
► प्रभावी शिक्षण के लिये विद्यार्थियों और उनके अध्यापकों के बीच संपर्क के लिये पायलट आधार पर केंद्रीय विद्यालयों में संगत ई-विषय सूची से परिलोडिड टेबलेट्स का वितरण शुरु किया गया है।
► मिड डे मिल योजना के अन्तर्गत स्कूल स्तर पर स्वतः निगरानी प्रणाली की शुरूआत की गई है ताकि योजना की सही सामयिक निगरानी हो सके। - इसके अतिरिक्त तीसरी, पाँचवीं और आठवीं कक्षाओं के लिये ज़िला स्तर तक नमूने के तौर पर 13 नवंबर, 2017 को बौद्धिक परिणामों पर आधारित एक राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) का आयोजन किया गया है ताकि राज्य और संघ शासित प्रदेश कमियों का पता लगाया जा सकें।
- माध्यमिक स्तर पर (दसवीं कक्षा) 33 राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण का आयोजन किया गया था।
- सर्वेक्षण के अनुसार, दसवीं कक्षा में (सर्कल-1) लड़कियों की उपलब्धि सभी विषयों में लड़कों के बराबर पाई गई। दसवीं कक्षा के लिये राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण का दूसरा चरण ज़िला स्तरीय नमूने के रुप में 5 फरवरी, 2018 को आयोजित किया गया।
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