विडंबना. जेपीएससी को टालनी पड़ी है छठी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा
रांची : झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की छठी सिविल सेवा मुख्य
परीक्षा में अनिवार्य विषय के रूप में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा को रखा गया
है. लेकिन आयोग के पास जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के नौ विषयों के प्रश्न
पत्र सेट करने के लिए विशेषज्ञ शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. झारखंड से बाहर के
लोगों की नियुक्ति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से झारखंड सरकार ने मुख्य
परीक्षा में नौ जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा को शामिल किया है.
शिक्षक के नहीं रहने के कारण आयोग को प्रश्न पत्र सेट करने में तकनीकी
परेशानी हो रही है. इसी कारण सात नवंबर 2017 से आरंभ होनेवाली मुख्य
परीक्षा आयोग ने स्थगित कर दी. किसी-किसी विषय में एक या अधिकतम दो
विशेषज्ञ शिक्षक ही मिल रहे हैं, तो आयोग के समक्ष गोपनीयता भंग होने का
खतरा मंडरा रहा है. झारखंड से बाहर भी इन विषयों के विशेषज्ञ नहीं मिल रहे
हैं. आयोग पिछले कई सप्ताह से इसे लेकर मंथन कर रहा है.
फलस्वरूप नयी तिथि का निर्धारण नहीं हो पा रहा है. जानकारी के अनुसार
आयोग एक विकल्प के रूप में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के संबंधित विषयों का
प्रश्न पत्र बैंक बनाने की योजना बना रहा है. ताकि उसमें से कोई भी प्रश्न
लेकर प्रश्न पत्र में शामिल किया जा सके. अनिवार्य विषय के रूप में पेपर टू
में एक विषय भाषा का रखना जरूरी है. तीन घंटे की यह परीक्षा 150 अंकों की
होगी. प्रश्न पत्र सेट होने के बाद आयोग जनवरी 2018 के अंतिम सप्ताह में
मुख्य परीक्षा की तिथि का निर्धारण कर सकता है.
झारखंड के पांच विवि में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों की
भारी कमी है. जानकारी के अनुसार वर्तमान में झारखंड में नागपुरी के 10,
कुड़ुख के 10, खड़िया में पांच, संताली में 09, कुरमाली में 11, खोरठा में
पांच, मुंडारी में 12, पंचपरगनियां व हो भाषा में एक भी शिक्षक नहीं हैं.
इन विषयों में शिक्षक थे, लेकिन सभी सेवानिवृत्त
हो गये.
आयोग मुख्य परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है. कुछ तकनीकी कारणों से
तिथि का निर्धारण नहीं हो पाया है. उम्मीद है कि जनवरी 2018 में मुख्य
परीक्षा ले ली जायेगी. केंद्र की स्थिति के अनुरूप तिथि का निर्धारण शीघ्र
कर दिया जायेगा.
-सचिव, जेपीएससी
मैट्रिक व इंटर की कॉपी जांचने के लिए भी नहीं मिलते जनजातीय भाषा के शिक्षक
रांची : राज्य के हाइस्कूल व प्लस टू उच्च विद्यालय में जनजातीय व
क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों की कमी है. प्लस टू उच्च विद्यालय में तो बिना
शिक्षक ही इन विषयों की पढ़ाई होती है.
शिक्षकों की कमी के कारण मैट्रिक व इंटर की उत्तरपुस्तिका के
मूल्यांकन में काफी पेरशानी होती है. जनजातीय भाषा के साथ-साथ क्षेत्रीय
भाषा के शिक्षक भी नहीं हैं. स्कूलों में हो, मुंडारी, संताली, उरांव,
पंचपरगनिया, नागपुरी, कुरमाली व खोरठा की पढ़ाई होती है़. प्लस टू स्कूल
के अलावा उच्च विद्यालयों में भी जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों की
कमी है़
राज्य के उच्च विद्यालय में जब भी शिक्षकों की नियुक्ति हुई,
जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों के पद रिक्त रहे गये़ राज्य के
सभी उवि में भी जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों के पद तक नहीं है.
राज्य के एक भी प्रोजेक्ट विद्यालय व राजकीय विद्यालय में जनजातीय भाषा
के शिक्षक नहीं हैं. अब तक मात्र राजकीयकृत व अपग्रेड उवि में जनजातीय व
क्षेत्रीय भाषा विषय में शिक्षक की नियुक्ति हुई है़
इंटर कॉलेजों में भी इन विषय के शिक्षकों की कमी है़ इंटर कॉलेजों
में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षकों के दूसरे पद सृजन का प्रस्ताव
शिक्षा विभाग में लंबित है़
हाइस्कूल में विषयवार शिक्षक
संताली 13
मुंडारी 05
हो 04
उरांव 17
खड़िया 01
खोरठा 04
नागपुरी 05
कुरमाली 08
पंचपरगनिया 00
स्रोत : वर्ष 2015 में हाइस्कूल में हुई शिक्षक नियुक्ति के आधार पर
विवि के शिक्षक जांचते हैं मैट्रिक की कॉपी
रांची : हाइस्कूल व प्लस टू विद्यालय में शिक्षकाें की कमी के कारण
विवि के शिक्षक मैट्रिक व इंटर की कॉपी जांचते हैं. वर्ष 2017 की मैट्रिक व
इंटर परीक्षा की जनजातीय भाषा की कॉपी मूल्यांकन के लिए काफी दिनों तक
केंद्र पर पड़ा रहा. केंद्र निदेशक द्वारा इस संबंध में जैक व डीइओ को पत्र
भी लिखा गया. इसके बाद उत्तरपुस्तिका मूल्यांकन के लिए विवि के शिक्षक
प्रतिनियुक्त किये गये. एक से दो शिक्षक ने सभी कॉपियों की जांच की.
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