रांची: झारखंड के रामगढ़ जिले में एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें बेकार पड़ी लकड़ियों में जान फूंकने की हुनर बचपन के दिनों से मिली है। आज उन्हें रिटायर हुए लगभग दस साल होने जा रहे हैं लेकिन उनके अंदर का कलाकार बिल्कुल युवा है। हम बात कर रहे हैं एक सेवानिवृत्त शिक्षक और कलाकार अनिल कुमार मिश्रा की। अनिल कुमार मिश्रा एक निजी विद्यालय से वर्ष 2014 में रिटायर हो गए हैं। लेकिन अनिल कुमार मिश्रा के अंदर जो पेंसिल चित्रकार और काष्ठ कलाकार छुपा है वह आज भी नौजवान है।
बचपन से ही बेकार पड़ी लकड़ियों को कलात्मक रूप देने की लगन
अनिल
कुमार मिश्रा बचपन के दिनों से बेकार पड़ी लकड़ियों और अन्य वस्तुओं को
फेंकने के बजाय अपने पास सहेज कर रखते थे। इतना ही नहीं स्कूल आने जाने के
क्रम में और घर के काम से निकलने के दौरान भी जब उन्हें सड़क के किनारे
बेकार पड़ी लकड़ियां और कुछ अन्य वस्तुएं मिल जाती थी, तब उन्हें वे बटोर कर
घर में ले आते थे। शुरुआती दिनों में उनके हिसाब से घर के बाकी सदस्य काफी
परेशान रहते थे। कई बार दूसरों से डांट सुनने के बाद भी अनिल कुमार मिश्रा
ने अपने स्वभाव को नहीं छोड़ा। स्कूल के दिनों में अनिल कुमार मिश्रा को
पढ़ाई के बाद जब भी उन्हें फुर्सत मिलता था वे उन बेकार पड़ी लकड़ियों को
तराशने में जुट जाते थे। लकड़ियों को काट छीलकर कोई ना कोई शक्ल देने में
अनिल कुमार मिश्रा सफल हो जाते थे।
33 साल की नौकरी में कला को जिन्दा रखने की कोशिश
33 साल पहले जब अनिल कुमार मिश्रा की नौकरी एक शिक्षक के रूप में लगी तब भी उन्होंने अपने अंदर के इस कला को दबने नहीं दिया बल्कि समय के साथ उसे और निखारने का काम किया। अनिल कुमार मिश्रा ने लगभग 33 साल तक बच्चों को शिक्षा देने का काम किया। इस दौरान उन्हें जब भी समय मिलता अपने बचपन की तरह हुए घर और सड़क से बेकार पड़ी वस्तुओं को इकट्ठा करते रहें और उन्हें नया शक्ल देते रहे।
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