नई दिल्ली | सीबीएसई की जिम्मेदारी कुछ कम करने की झलक भी बजट में दिखी। इसके साथ ही नेशनल एंट्रेंस टेस्ट जैसी नई संस्था बनाने, शिक्षा क्षेत्र में 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए के आबंटन का प्रस्ताव है। 350 आॅनलाइन कोर्स के लिए ‘स्वयं’ नाम के आॅनलाइन प्लेटफॉर्म का प्रस्ताव है सामने आई।
‘स्वयं’ नामक प्लेटफॉर्म की जहां सराहना हुई वहीं खाली पड़े पदों को भरने और फैकल्टी को ठेके की जगह स्थायी बनाने के बाबत जरूरी धन मुहैया कराने पर चुप्पी को लोगों ने आड़े हाथ लिया। शिक्षकों-शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार एक तरफ कई बजट सत्रों में आइआइटी, आइआइएम के अलावा दूसरे शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ाने का राग अलापती रहती है दूसरी ओर योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए भर्ती प्रक्रिया, वेतनमान आदि पर धन खर्च करने से परहेज करती है। मानव संसाधन मंत्रालय को मिले धन का आबंटन 79 हजार करोड़ को कम से कम एक लाख करोड़ करने की जरूरत थी।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश कुमार ने ‘स्वयं’ को अच्छा कदम बताया है। यह सब आॅनलाइन है इसलिए यह उन छात्रों व युवाओं के लिए लाभदायक साबित होंगे जो किसी वजह से विश्वविद्यालयों से सीधे नहीं जुड़ सके। एसआरसीसी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अनिल कुमार का कहना है कि उच्च शिक्षा को और बेहतर बनाने के नजरिए से ‘नेशनल टेस्टिंग एजंसी’ बनाने का प्रस्ताव एक अच्छा कदम है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए शोध को बढ़ाने और कॉलेजों के आधारभूत ढांचे को और बेहतर बनाने पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए उच्च शिक्षा में धन के ज्यादा आबंटन की मांग जायज है।
डीयू के शिक्षक डॉक्टर संजय कुमार ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं को एक बोर्ड के तहत लाने के प्रस्ताव से प्रतियोगिताओं में पारदर्शिता आएगी। एक अन्य शिक्षक मनोज पुनिया ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए गुणी शिक्षक का होना जरूरी है। और यह शिक्षकों की सेवा शर्तों को बेहतर बनाए बिना संभव नहीं है। ठेका प्रणाली, देश और समाज को आगे ले जाने वाले किसी भी क्षेत्र का कैंसर है। ‘राइट टु एजुकेशन फोरम’ के संयोजक अंबरीश राय ने कहा कि देश में पांच लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। जबकि कार्यरत शिक्षकों में छह लाख से ज्यादा अप्रशिक्षित हैं। देश में 30 फीसद स्कूलों में शौचालय नहीं हैं जबकि 20 फीसद में शुद्ध पीने का पानी की व्यवस्था होनी है। यह सब तभी होगा जब शिक्षा को प्रमुख प्राथमिकता में लाए सरकार।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने शिक्षा पर सरकार के नजरिए की सराहना की। एनएसयूआइ ने रोजगार को लेकर कोई रोडमैप नहीं बताने को लेकर सरकार की खिंचाई की। छात्र संगठन आइसा और एसएफआइ का कहना है कि सरकार शिक्षा पर पिछले साल की योजनाओं को धरातल पर लाने में विफल रही है। सरकार ने युवाओं और छात्रों को केवल सपने दिखाए हैं। शैक्षणिक परिसरों आधारभूत ढांचा चरमरा गया है। नए बजट में भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जा सका।
‘स्वयं’ नामक प्लेटफॉर्म की जहां सराहना हुई वहीं खाली पड़े पदों को भरने और फैकल्टी को ठेके की जगह स्थायी बनाने के बाबत जरूरी धन मुहैया कराने पर चुप्पी को लोगों ने आड़े हाथ लिया। शिक्षकों-शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार एक तरफ कई बजट सत्रों में आइआइटी, आइआइएम के अलावा दूसरे शिक्षा संस्थानों की संख्या बढ़ाने का राग अलापती रहती है दूसरी ओर योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए भर्ती प्रक्रिया, वेतनमान आदि पर धन खर्च करने से परहेज करती है। मानव संसाधन मंत्रालय को मिले धन का आबंटन 79 हजार करोड़ को कम से कम एक लाख करोड़ करने की जरूरत थी।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जगदीश कुमार ने ‘स्वयं’ को अच्छा कदम बताया है। यह सब आॅनलाइन है इसलिए यह उन छात्रों व युवाओं के लिए लाभदायक साबित होंगे जो किसी वजह से विश्वविद्यालयों से सीधे नहीं जुड़ सके। एसआरसीसी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अनिल कुमार का कहना है कि उच्च शिक्षा को और बेहतर बनाने के नजरिए से ‘नेशनल टेस्टिंग एजंसी’ बनाने का प्रस्ताव एक अच्छा कदम है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए शोध को बढ़ाने और कॉलेजों के आधारभूत ढांचे को और बेहतर बनाने पर काम करने की जरूरत है। इसके लिए उच्च शिक्षा में धन के ज्यादा आबंटन की मांग जायज है।
डीयू के शिक्षक डॉक्टर संजय कुमार ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं को एक बोर्ड के तहत लाने के प्रस्ताव से प्रतियोगिताओं में पारदर्शिता आएगी। एक अन्य शिक्षक मनोज पुनिया ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता के लिए गुणी शिक्षक का होना जरूरी है। और यह शिक्षकों की सेवा शर्तों को बेहतर बनाए बिना संभव नहीं है। ठेका प्रणाली, देश और समाज को आगे ले जाने वाले किसी भी क्षेत्र का कैंसर है। ‘राइट टु एजुकेशन फोरम’ के संयोजक अंबरीश राय ने कहा कि देश में पांच लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। जबकि कार्यरत शिक्षकों में छह लाख से ज्यादा अप्रशिक्षित हैं। देश में 30 फीसद स्कूलों में शौचालय नहीं हैं जबकि 20 फीसद में शुद्ध पीने का पानी की व्यवस्था होनी है। यह सब तभी होगा जब शिक्षा को प्रमुख प्राथमिकता में लाए सरकार।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने शिक्षा पर सरकार के नजरिए की सराहना की। एनएसयूआइ ने रोजगार को लेकर कोई रोडमैप नहीं बताने को लेकर सरकार की खिंचाई की। छात्र संगठन आइसा और एसएफआइ का कहना है कि सरकार शिक्षा पर पिछले साल की योजनाओं को धरातल पर लाने में विफल रही है। सरकार ने युवाओं और छात्रों को केवल सपने दिखाए हैं। शैक्षणिक परिसरों आधारभूत ढांचा चरमरा गया है। नए बजट में भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जा सका।
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