रांची : मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी ने कहा है कि पारा शिक्षकों की
स्थायीकरण सहित अन्य मांगों पर विचार के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया
जायेगा. 60 दिन के अंदर समिति रिपोर्ट देगी. समिति की अनुशंसा के बाद सरकार
पारा शिक्षकों की मांगों पर निर्णय लेगी.
मुख्य सचिव ने उक्त आश्वासन सोमवार को एकीकृत पारा शिक्षक संघर्ष
मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के दाैरान दी. मुख्य सचिव व पारा
शिक्षकों के प्रतिनिधिमंडल के बीच लगभग 50 मिनट तक वार्ता हुई. इस दाैरान
मोर्चा की सभी मांगों पर विचार-विमर्श किया गया.
सरकार की अोर से कहा गया कि स्थायीकरण सहित जो भी मांगे हैं, उस पर
विचार के लिए उच्चस्तरीय समिति बनायी जायेगी. समिति में पारा शिक्षकों के
तीन प्रतिनिधि भी रहेंगे.
समिति सभी मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर दो माह के अंदर
रिपोर्ट देगी. जरूरत पड़ेगी, तो समिति दूसरे राज्यों में पारा शिक्षकों को
मिलनेवाली सुविधाअों का भी अध्ययन करेगी. सरकार की अोर से मुख्य सचिव के
अलावा वित्त विभाग के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह, प्रधान शिक्षा सचिव एपी
सिंह, कार्मिक सचिव आदि उपस्थित रहे.
फिलहाल आंदोलन जारी
कोट
प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में कार्यरत पारा शिक्षकों की सेवा स्थायी
की जानी चाहिए. सेवा स्थायीकरण से समस्या समाप्त हो जायेगी. समान कार्य के
लिए समान वेतन देने से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन भी हो जायेगा.
चितरंजन कुमार, प्रदेश मीडिया प्रभारी, wझारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ
पारा शिक्षक अपनी मांगों को लेकर एक बार फिर आंदोलन पर हैं. सरकार उदासीन
बनी है. शिक्षकों के साथ अन्याय कर रही है. समान कार्य समान वेतन के आधार
पर पारा शिक्षकों को समायोजित किया जाना चाहिए.
अभिनव भगत, एनएसयूआइ के रीजनल मीडिया कोऑर्डिनेटर
शिक्षक संघर्ष मोर्चा ने कहा सरकार का पत्र मिलने के बाद होगा आंदोलन समाप्त
मुख्य सचिव से वार्ता के बाद िशक्षक संघर्ष मोर्चा के बजरंग प्रसाद ने
बताया कि सरकार का पत्र मिलने बाद इसका अध्ययन किया जायेगा. इसके बाद ही
आंदोलन समाप्त करने की घोषणा की जा सकेगी. फिलहाल आंदोलन जारी है.
इससे पहले दिन में मोरहाबादी मैदान स्थित चिल्ड्रेन पार्क में उपस्थित
हजारों प्रदर्शनकारी पारा शिक्षकों को मुख्य सचिव द्वारा वार्ता के लिए
आमंत्रित करने की सूचना दी गयी. दोपहर 12 बजे मुख्य सचिव से वार्ता का
न्योता मिलने के बाद प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षक शांत हुए. साथ ही समाधान
नहीं होने पर आंदोलन पर डटे रहने की बात कहते रहे.
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