गुमला : राज्य सरकार के आदेश का अनुपालन करने का समय अधिकारियों के लिए
मात्र 24 घंटे रह गया है। बीस नवंबर तक हड़ताल से वापस लौट कर जो पारा
शिक्षक अपने काम पर विद्यालय नहीं आएंगे उन्हें घोषित तौर पर बर्खास्त करने
का आदेश निर्गत है।
इस आदेश को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारी में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। कानूनी प्रावधान यह है कि जिला स्तरीय शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा पारा शिक्षकों की न नियुक्ति की जाती है और न ही उनकी सेवा का अनुमोदन ही किया जाता है। ग्राम शिक्षा समिति को पारा शिक्षकों के चयन का अधिकार है और प्रखंड शिक्षा समिति को उनकी सेवा का अनुमोदन करने का अधिकार है। प्रखंड शिक्षा समिति का अनुमोदन अंतिम और मान्य माना जाता है। ऐसी दशा में यदि बीस नवंबर को पारा शिक्षक अपने विद्यालयों में योगदान नहीं देंगे तो उनकी बर्खास्तगी का आदेश किस स्तर से जारी होगा यह अनुत्तरित प्रश्न बन कर रह गया है। जिला शिक्षा अधीक्षक जयगो¨वद ¨सह यह स्वीकार करते हैं कि प्रखंड शिक्षा समिति को पारा शिक्षकों की सेवा समाप्त करने का थोड़ा बहुत अधिकार है। प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी उस समिति से जुड़े होते हैं जो उनके मातहत कार्यरत हैं। लेकिन जिले में जो प्रतिवेदन प्राप्त हो रहे हैं उसके अनुसार हड़ताल में जाने वाले पारा शिक्षकों की संख्या में निरंतर वृद्धि होते जा रही है। यदि हड़ताली पारा शिक्षकों को बल्क में बर्खास्त किया जाता है तो इसके लिए हर ग्राम शिक्षा समिति को बैठक बुलानी होगी। प्रस्ताव पारित कराना होगा। यह काम शिक्षा विभाग के लिए आसमान से तारा तोड़ने से कम कठिन नहीं होगा। यदि ग्राम शिक्षा समिति पारा शिक्षकों की बर्खास्तगी के लिए तैयार भी हो जाती है तो पारा शिक्षकों के पास न्यायालय जाने का रास्ता खुल जाएगा। न्यायालय का फैसला अहम होगा। अहम इस मामले में कि लोकतंत्र में पारा शिक्षकों को अपनी मांग मांगने का संवैधानिक अधिकार है। न्यायलय भी समान काम के लिए समान वेतन का आदेश पहले दे चुका है। ऐसी स्थिति में पारा शिक्षकों को प्राकृतिक न्याय पाने में सुविधा होगी। वहीं सरकार को जवाब देने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। कानून विद् भी यह मानते हैं कि पारा शिक्षकों की बर्खास्तगी वह भी समूह में थोड़ा कठिन प्रतीत होता है। पारा शिक्षक संघ के नेता शंकर प्रजापति का कहना है कि हमें संवैधानिक अधिकार है अपना हक मांगने और बेहतर जीवन जीने के आधार बनाने का। हम ऐसा कोई भी मांग नहीं कर रहे हैं जो कानून विरोधी हो। बिहार और छत्तीसगढ़ में पारा शिक्षकों को देय सुविधाओं के अध्ययन के लिए राज्य सरकार ने खुद कमेटी का गठन किया था। उस समिति को अध्ययन करने के लिए भेजा भी गया। अध्ययन प्रतिवेदन में किस आधार पर पारा शिक्षकों को सेवा स्थायी और वेतनमान से वंचित करने का उल्लेख है इसका पूर्ण खुलासा राज्य सरकार ने नहीं किया है। हम पारा शिक्षक बर्खास्तगी से डरने वाले इसलिए नहीं है कि उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने का अवसर है। कानून उसके पक्ष में है। यदि राज्य सरकार असंवैधानिक तरीके से बर्खास्त करना चाहती है तो कर दें। हमें जो मानदेय मिलता है उससे जीवन यापन करना संभव नहीं हो पा रहा है। इसलिए हमारी लड़ाई न सिर्फ उग्र होगी बल्कि मांग पूरी होने तक जारी रहेगी।
इस आदेश को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारी में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। कानूनी प्रावधान यह है कि जिला स्तरीय शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा पारा शिक्षकों की न नियुक्ति की जाती है और न ही उनकी सेवा का अनुमोदन ही किया जाता है। ग्राम शिक्षा समिति को पारा शिक्षकों के चयन का अधिकार है और प्रखंड शिक्षा समिति को उनकी सेवा का अनुमोदन करने का अधिकार है। प्रखंड शिक्षा समिति का अनुमोदन अंतिम और मान्य माना जाता है। ऐसी दशा में यदि बीस नवंबर को पारा शिक्षक अपने विद्यालयों में योगदान नहीं देंगे तो उनकी बर्खास्तगी का आदेश किस स्तर से जारी होगा यह अनुत्तरित प्रश्न बन कर रह गया है। जिला शिक्षा अधीक्षक जयगो¨वद ¨सह यह स्वीकार करते हैं कि प्रखंड शिक्षा समिति को पारा शिक्षकों की सेवा समाप्त करने का थोड़ा बहुत अधिकार है। प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी उस समिति से जुड़े होते हैं जो उनके मातहत कार्यरत हैं। लेकिन जिले में जो प्रतिवेदन प्राप्त हो रहे हैं उसके अनुसार हड़ताल में जाने वाले पारा शिक्षकों की संख्या में निरंतर वृद्धि होते जा रही है। यदि हड़ताली पारा शिक्षकों को बल्क में बर्खास्त किया जाता है तो इसके लिए हर ग्राम शिक्षा समिति को बैठक बुलानी होगी। प्रस्ताव पारित कराना होगा। यह काम शिक्षा विभाग के लिए आसमान से तारा तोड़ने से कम कठिन नहीं होगा। यदि ग्राम शिक्षा समिति पारा शिक्षकों की बर्खास्तगी के लिए तैयार भी हो जाती है तो पारा शिक्षकों के पास न्यायालय जाने का रास्ता खुल जाएगा। न्यायालय का फैसला अहम होगा। अहम इस मामले में कि लोकतंत्र में पारा शिक्षकों को अपनी मांग मांगने का संवैधानिक अधिकार है। न्यायलय भी समान काम के लिए समान वेतन का आदेश पहले दे चुका है। ऐसी स्थिति में पारा शिक्षकों को प्राकृतिक न्याय पाने में सुविधा होगी। वहीं सरकार को जवाब देने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। कानून विद् भी यह मानते हैं कि पारा शिक्षकों की बर्खास्तगी वह भी समूह में थोड़ा कठिन प्रतीत होता है। पारा शिक्षक संघ के नेता शंकर प्रजापति का कहना है कि हमें संवैधानिक अधिकार है अपना हक मांगने और बेहतर जीवन जीने के आधार बनाने का। हम ऐसा कोई भी मांग नहीं कर रहे हैं जो कानून विरोधी हो। बिहार और छत्तीसगढ़ में पारा शिक्षकों को देय सुविधाओं के अध्ययन के लिए राज्य सरकार ने खुद कमेटी का गठन किया था। उस समिति को अध्ययन करने के लिए भेजा भी गया। अध्ययन प्रतिवेदन में किस आधार पर पारा शिक्षकों को सेवा स्थायी और वेतनमान से वंचित करने का उल्लेख है इसका पूर्ण खुलासा राज्य सरकार ने नहीं किया है। हम पारा शिक्षक बर्खास्तगी से डरने वाले इसलिए नहीं है कि उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने का अवसर है। कानून उसके पक्ष में है। यदि राज्य सरकार असंवैधानिक तरीके से बर्खास्त करना चाहती है तो कर दें। हमें जो मानदेय मिलता है उससे जीवन यापन करना संभव नहीं हो पा रहा है। इसलिए हमारी लड़ाई न सिर्फ उग्र होगी बल्कि मांग पूरी होने तक जारी रहेगी।
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