Ranchi : 15 नवंबर, यानी स्थापना दिवस के दिन जो घटना
मोरहाबादी मैदान में पारा शिक्षकों के साथ हुई, उसे लेकर सूबे के खाद्य
आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने सरकार पर कई सवाल उठाये. उन्होंने न्यूज विंग
के ब्यूरो चीफ अक्षय कुमार झा से एक्सक्लूसिव बातचीत की.
पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के पास पारा शिक्षकों का मामला शांत करने के लिए चार साल का समय था, लेकिन कोई नीति नहीं बनी. साथ ही कहा कि जो कुछ भी उस दिन हुआ, उससे साबित होता है कि झारखंड का प्रशासनिक तंत्र ध्वस्त हो चुका है, तो जिसकी वजह से प्रशासनिक चूक हुई, क्यों नहीं उनकी जिम्मदारी तय की जाये. पेश है न्यूज विंग के साथ मंत्री सरयू राय का पूरा इंटरव्यू.
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सरयू
राय ने कहा कि यदि हमको कोई कठोर निर्णय लेना है, तो एक समय तो चाहिए. साल
भर का समय था आपके पास. साल भर में विचार कर लेना चाहिए था कि सरकार को
क्या करना है. चार साल का समय था सरकार के पास. सरकार को इस पर निर्णय लेना
चाहिए था. ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई आये, तो उसको हम लॉलीपॉप दे दें और
वह चला जायेगा, फिर कोई आयेगा. इसलिए एक सुचिंतित निर्णय होना चाहिए इसके
बारे में.
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पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के पास पारा शिक्षकों का मामला शांत करने के लिए चार साल का समय था, लेकिन कोई नीति नहीं बनी. साथ ही कहा कि जो कुछ भी उस दिन हुआ, उससे साबित होता है कि झारखंड का प्रशासनिक तंत्र ध्वस्त हो चुका है, तो जिसकी वजह से प्रशासनिक चूक हुई, क्यों नहीं उनकी जिम्मदारी तय की जाये. पेश है न्यूज विंग के साथ मंत्री सरयू राय का पूरा इंटरव्यू.
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आंदोलन नयी बात नहीं थी
सरयू राय ने कहा कि पारा शिक्षकों का आंदोलन कोई आज का नहीं है. इससे पहले भी उन्होंने घेरा डालो-डेरा डालो के नाम से आंदोलन किया था. कई दिनों तक मोरहाबादी मैदान में पड़े रहे थे. राज्य सरकार ने भी बीच में इनसे बात की थी. राज्य से टीम दूसरे राज्यों में भी पारा शिक्षकों के लिए अध्ययन के लिए गयी. इस बार के आंदोलन का अंतर यही है कि 15 नवंबर को जिस दिन राज्य का स्थापना दिवस था, उसमें इन लोगों ने व्यवधान किया. इसके दो पहलू मेरी समझ से हैं. पहला कि पहले भी आंदोलन था इनका और इस बार भी है.इनके बदले जो दूसरे आयेंगे, उनकी शर्तें क्या होंगी
अगर सरकार को लगता है कि इन्होंने बहुत भारी गलती की है और कार्रवाई करनी ही है, तो सरकार को इसमें एक सुविचारित निर्णय लेना चाहिए. क्योंकि, इनको सजा देंगे, तो कई तरह के सवाल आयेंगे कि इनको बहाल किसने किया. इनको हटाने का अधिकार किसके पास है. इनको जब हम हटायेंगे, तो दूसरे जो भी आयेंगे, उनकी शर्तें यही होंगी या उनसे बेहतर होंगी. जब शर्तें यही रहेंगी, तो कल को जाकर वे भी इसी रास्ते पर जा सकते हैं. इसलिए, एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय के बाद ही कोई कार्रवाई करना उचित होगा.इसे भी पढ़ें- शाह ब्रदर्स खनन घोटालाः AG,DMO,विभागीय मंत्री पर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर ACB पहुंची…
इनकी संख्या पर भी गौर करना होगा
राजनीति, वोट और चुनाव की बात को हम छोड़ दें, तब भी जो इनकी संख्या है और जो इनके परिवार इनसे जुड़े हैं, बड़ी संख्या में लोग इनपर निर्भर हैं. शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी और इनके नहीं रहने से खासकर ग्रामीण इलाकों में बहुत मुश्किल हो जायेगा स्कूलों को चलाना.चार साल तक लॉलीपॉप देने का काम हुआ
घटना प्रशासनिक चूक, क्यों नहीं होती जिम्मेदारी तय
15 नवंबर को मोरहाबादी मैदान में जो देखने को मिला, वह सीन प्रशासन की क्षमता पर प्रश्नचिह्न उठानेवाला वाकया है. एक तरह का यह संकेत है कि झारखंड की प्रशासनिक क्षमता ध्वस्त हो गयी है. प्रशासनिक मशीनरी प्रभावी नहीं हो पायी उस दिन. उसका कारण क्या था, शिनाख्त इस बात की होनी चाहिए. औचक तो इनका कार्यक्रम नहीं था. कई दिनों पहले से पारा शिक्षक आंदोलन की बात कह रहे थे. इनको अगर पकड़ना ही था, तो पारा शिक्षक तो चिह्नित हैं. कौन किस स्कूल में पढ़ाता है, जिला प्रशासन जानता है. वहीं का जिला प्रशासन उनको वहां पकड़ लेता. यहां आने के बाद क्यों इस तरह की बात हुई. आ गये, तो पता होना चाहिए था. खुफिया विभाग हमारा है, उन्हें पता होना चाहिए था कि कितनी संख्या में वे आ रहे हैं. बीच-बीच में बसों को रोककर चेकिंग की इन लोगों ने, तो सवाल उठता है कि यह निर्णय कैसे हुआ. अब रास्ते में एक बस आ रही है, उसमें 10 पारा टीचर हैं और 40 आम जनता, तो सभी से आप पूछेंगे कि आप कौन हैं, कहां जा रहे हैं. जो रणनीति बनी इस समस्या से निपटने के लिए, वह एक विफल रणनीति साबित हुई. इस बात के लिए तो जिम्मेदारी सुनिश्चित होनी चाहिए. कौन ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपरिपक्व तरीके से एक बड़ी घटना को हैंडल किया. ऐसे में पारा शिक्षकों का जितना दोष हैए उससे अधिक दोष प्रशासन में इस घटना को काबू करनेवाले अधिकारियों का है और विफल नीति का है.इसे भी पढ़ें- विकास के पैमाने पर खरा नहीं उतर पाया झारखंड, चार साल में 50 हजार करोड़ की योजनाओं का काम पूरा नहीं
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