प्रणय कुमार सिंह, रांची। रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर जनजातीय
एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में बिना शिक्षक के ही छात्रों को एमए की डिग्री
मिल रही है। कहने को तो इस विभाग में नौ भाषाओं की पढ़ाई होती है लेकिन दो
विषयों को छोड़ दें तो बाकी के सात विषयों में एक भी शिक्षक नहीं हैं।
खास यह कि जबसे यहां पंचपरगनिया व खोरठा भाषा की पढ़ाई शुरू हुई तब से यानी 1982 से ही दोनों में शिक्षक नहीं हैं और न कभी नियुक्ति ही हुई। लेकिन इन विषयों से हर साल छात्रों को मास्टर की डिग्रियां जरूर मिल रही हैं।
शिक्षक नहीं रहने के कारण इन विषयों की उत्तरपुस्तिकाओं की जांच प्राइवेट शिक्षकों से कराई जाती है। जबकि झारखंड जनजातीय बहुल राज्य है, जनजातीय भाषा यहां की अस्मिता से जुड़ी हुई है। बावजूद इसके, यह दुर्गति है। वर्तमान में इस विभाग में कुल नौ भाषाओं के लिए विभागाध्यक्ष सहित केवल तीन शिक्षक ही हैं। यही तीन शिक्षक करीब 700 विद्यार्थियों का भविष्य गढ़ रहे हैं। पिछले दिनों करमा पर्व उत्सव में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने इस विभाग को सेंटर आफ एक्सीलेंस बनाने की बात कही थी। कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय भी कई बार सेंटर आफ एक्सीलेंस की बात कह चुके हैं। लेकिन धरातल पर यह तब तक नहीं उतर सकता जब तक सभी भाषा में शिक्षकों की बहाली नहीं हो जाती।
दो भाषाओं के ही शिक्षक
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पांच जनजातीय भाषाएं कुड़ुख, संथाली, हो, खडिय़ा व मुंडारी तथा चार क्षेत्रीय भाषाएं नागपुरी, कुरमाली, खोरठा व पंचपरगनिया में छात्रों का नामांकन जारी है। इन नौ भाषाओं में नागपुरी में डॉ. टीएन साहू (विभागाध्यक्ष) व डॉ. उमेशानंद तिवारी तथा कुडुख के लिए डॉ. हरि उरांव हैं। शेष सात भाषा शिक्षक विहीन हैं। कभी-कभी रिसर्च स्कॉलर भीअपनी इच्छानुसार क्लास लेते हैं।
सबसे अधिक छात्र कुड़ुख में
विभाग में सेमेस्टर वन व थ्री मिलाकर करीब सात सौ विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। इसमें सबसे अधिक कुड़ुख में तो सबसे कम हो में हैं।
सेमेस्टर वन में छात्रों की संख्या
भाषा-विद्यार्थी
कुड़ुख- 155
मुंडारी- 38
नागपुरी-50
कुरमाली-23
पंचपरगनिया-20
खोरठा-16
संथाली-11
खडिय़ा- 09
हो-03 ।
खास यह कि जबसे यहां पंचपरगनिया व खोरठा भाषा की पढ़ाई शुरू हुई तब से यानी 1982 से ही दोनों में शिक्षक नहीं हैं और न कभी नियुक्ति ही हुई। लेकिन इन विषयों से हर साल छात्रों को मास्टर की डिग्रियां जरूर मिल रही हैं।
शिक्षक नहीं रहने के कारण इन विषयों की उत्तरपुस्तिकाओं की जांच प्राइवेट शिक्षकों से कराई जाती है। जबकि झारखंड जनजातीय बहुल राज्य है, जनजातीय भाषा यहां की अस्मिता से जुड़ी हुई है। बावजूद इसके, यह दुर्गति है। वर्तमान में इस विभाग में कुल नौ भाषाओं के लिए विभागाध्यक्ष सहित केवल तीन शिक्षक ही हैं। यही तीन शिक्षक करीब 700 विद्यार्थियों का भविष्य गढ़ रहे हैं। पिछले दिनों करमा पर्व उत्सव में राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने इस विभाग को सेंटर आफ एक्सीलेंस बनाने की बात कही थी। कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय भी कई बार सेंटर आफ एक्सीलेंस की बात कह चुके हैं। लेकिन धरातल पर यह तब तक नहीं उतर सकता जब तक सभी भाषा में शिक्षकों की बहाली नहीं हो जाती।
दो भाषाओं के ही शिक्षक
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग में पांच जनजातीय भाषाएं कुड़ुख, संथाली, हो, खडिय़ा व मुंडारी तथा चार क्षेत्रीय भाषाएं नागपुरी, कुरमाली, खोरठा व पंचपरगनिया में छात्रों का नामांकन जारी है। इन नौ भाषाओं में नागपुरी में डॉ. टीएन साहू (विभागाध्यक्ष) व डॉ. उमेशानंद तिवारी तथा कुडुख के लिए डॉ. हरि उरांव हैं। शेष सात भाषा शिक्षक विहीन हैं। कभी-कभी रिसर्च स्कॉलर भीअपनी इच्छानुसार क्लास लेते हैं।
सबसे अधिक छात्र कुड़ुख में
विभाग में सेमेस्टर वन व थ्री मिलाकर करीब सात सौ विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। इसमें सबसे अधिक कुड़ुख में तो सबसे कम हो में हैं।
सेमेस्टर वन में छात्रों की संख्या
भाषा-विद्यार्थी
कुड़ुख- 155
मुंडारी- 38
नागपुरी-50
कुरमाली-23
पंचपरगनिया-20
खोरठा-16
संथाली-11
खडिय़ा- 09
हो-03 ।
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